Main Menu

संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी दयालुता और क्षमा का प्रतीक थी, आपने कभी अपने नफ्स के लिए किसी से बदला नहीं लिया, लेकिन अगर अल्लाह के आदेशों का उल्लंघन होता तो अल्लाह के लिए बदला लेते थे, वरना माफ कर देते थे।

उहुद के युद्ध में काफिरों ने आप के दांत तोड़े, सिर फोड़ा, आप एक गुफा में गिर गए थे, साथियों ने कहा कि उनको शाप दीजिए: संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नेकहा: मैं शाप देने के नहीं भेजा गया अल्लाह ने मुझे लोगों को दीन की ओर आकर्षित करने के लिए भेजा है, फिर आपने यह दुआ की: “ऐ अल्लाह! मेरी कौम का सही मार्गदर्शन कर, वह मुझे जानती नहीं है।”

एक यात्रा में संदेष्टा मुहम्मद एक पेड़ की छाया में आराम कर रहे थे और अपनी तलवार को पेड़ की शाखा पर लटका दिया था, एक दुश्मन आया,  तलवार शाखा से उठाया और आपको जगा कर सख्ती से बोलाः मुहम्मद!अब तुम्हें मुझ से कौन बचाएगा ?

आपने बहुत इत्मीनान से कहा: अल्लाह! न जाने इसमें क्या शक्ति थी कि शत्रु थर थर कांपने लगा और तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर गई।

अब संदेष्टा मुहम्मद ने वह तलवार अपने हाथ में उठा लिया और उससे कहाः बता अब तुम्हें मुझ से कौन बचा सकता है ?

वह हैरानी और परेशानी की स्थिति में दया याजना करने लगा,कि अगर आपकी दया हुई तब ही बच सकते हैं वरना हमें कोई बचाने वाला नहीं। अतः आपने उससे कहा: जाओ मैं किसी से बदला नहीं लेता।

उसी प्रकार हबार नामक एक व्यक्ति ने संदेष्टा मुहम्मद सल्ल. की बेटी हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को भाला मारा, वह हौदज से नीचे गिर गईं और गर्भ गिर गया, हबार ने आप से क्षमा मांगी, तो संदेष्टा मुहम्मद सल्ल. उसे माफ कर दिया।

संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया और माफी के स्पष्टीकरण के लिए हम बनू हनीफा के सरदार सुमामा बिन उसाल हनफी की घटना का उल्लेख करना न भूलें जो मुसैलमा कज़्ज़ाब के आदेश से भेस बदल कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हत्या करने निकले थे लेकिन मुसलमानों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और मदीना लाकर मस्जिद के एक खंभे से बांध दिया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आये तो उस से कहाः सुमामा! तुम्हारे पास क्या है ? उन्होंने कहा: हे मुहम्मद! मेरे पास भलाई है, अगर आप मुझे क़त्ल कर दें तो एक खून वाले की हत्या करेंगे और अगर एहसान करें तो एक कदर-दान पर दया करेंगे, और अगर माल चाहते हैं तो जो चाहें मांगें। संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे उसी हालत में छोड़ दिया, दूसरी बार आप उस के पास से गुज़रे तो वही सवाल किया, और सुमामा ने फिर वही जवाब दिया, तीसरी बार गुज़रे तो फिर वही सवाल किया और सुमामा ने फिर वही जवाब दिया। संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः इसे आज़ाद कर दो। सुमामा जाओ मैंने तुझे क्षमा कर दिया।

जब सुमामा को आज़ाद कर दिया गया तो वह निकला और मदीना के एक बाग़ीचे में आया, वहाँ स्नान किया, अपने कपड़े धुला फिर संदेष्टा मुहम्मद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, उस समय आप मस्जिद में बैठे हुए थे, उसने कहाः

ऐ मुहम्मद ! आपके चेहरे से ज्यादा अप्रिय मेरी दृष्टि में कोई चेहरा नहीं था और आपके धर्म से अधिक अप्रिय मेरी दृष्टि में कोई धर्म नहीं था, और आपके शहर से अधिक अप्रिय कोई शहर नहीं था। अब स्थिति यह हो चुकी है कि आपके चेहरे से अधिक प्यारा कोई चेहरा नहीं, आपके धर्म से अधिक प्यारा कोई धर्म नहीं और आपके शहर से अधिक प्यारा कोई शहर नहीं। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्ति कोई सत्य उपासना योग्य नहीं और मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के बन्दे और उसके दास हैं।

अबू सुफयान बिन हर्ब उमवी वह व्यक्ति था जिसने उहुद और अहज़ाब युद्ध आदि में संदेष्टा मुहम्मद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर निरंतर आक्रमण किया था, और सेना-पति बना रहता था। मक्का विजय के समय संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से बहुत दयालुता से बात कीः

” हे अबू सुफयान! अभी भी समय नहीं आया कि तुम इतनी बात समझ लो कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं।”

अबू सुफयान बोलाः मेरे माता पिता आप पर कुर्बान! आप कितने विवेक, कितने सम्बन्ध का हक़ अदा करने वाले और कितने दुश्मनों पर दया करने वाले और क्षमाशील हैं।

संदेष्टा मुहम्मद सल्ल. की पवित्र जीवनी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उनके जैसा दयालू इनसान इस धरती पर पैदा नहीं हुआ, 21 वर्ष तक कष्ट सहन करने के बाद वह दिन भी आया कि आप अपने जन्म-भूमि (मक्का) जिस से आपको निकाल दिया गया था उस पर विजय पा चुके थे। प्रत्येक विरोद्धी और शत्रु आपके कबज़ा में थे, यदि आप चाहते तो हर एक से एक एक कर के बदला ले सकते थे और 21 वर्ष तक जिन्हों ने उन्हें चैन की साँस तक लेने नहीं दिया था सब्हों का सफाया कर सकते थे लेकिन आप  ऐसा आदेश देते तो कैसे ? आप सम्पूर्ण मानवता के लिए दयालुता बना कर भेजा गया था। आपका उद्देश्य तो पूरे जगत का कल्याण था इस लिए आपने लोगों की सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर दी।

संदेष्टा मुहम्मद सल्ल. की पवित्र जीवनी में आता है कि एक बार उन्हों ने लोगों को सत्य मार्ग बताने के लिए ताइफ की यात्रा की और वहाँ पहुंच कर समुदाय के नायकों से बातें कीं परन्तु किसी ने आपकी बात पर ध्यान नहीं दिया बल्कि अपने लफंगों को उनके पीछे लगा दिया जिन्हों ने आपको  पत्थर मारा, पूरा शरीर रक्त से लतपत हो गया, आप एक स्थान पर बेहोश होकर गिर पड़े, वहीं आकाशीय दूत जिब्रील पधारते हैं जिनके साथ पहाड़ों के दूत थे वे अनुमति चाहते हैंं कि यदि आप आदेश दें तो मैं ताइफ निवासियों को दो पहाड़ों के बीच पीस दूं।

परन्तु संदेष्टा मुहम्मद मुहम्मद सल्ल. की दयालुता देखिए कि वहाँ भी कहते हैंः नहीं उन्हें रहने दिया जाए, मुझे आशा है कि अल्लाह उन्हीं के वंश से ऐसे लोगों को पैदा करेगा जो मात्र एक अल्लाह की पूजा करने वाले होंगे बहुदेववादी नहीं होंगे। (सही बुख़ारी)

मुहम्मद सल्ल. ने किसी युद्ध में देखा कि किसी ने एक महिला की हत्या कर दी है तो आप क्रोधित हुए और बच्चों और महिलाओं को युद्ध में भी मारने से रोक दिया। (सही बुखारी, सही मुस्लिम)

इस्लाम के विश्व शान्ति का अनुभव करें कि शान्ति दूत ने फरमायाः ” जिसने किसी (इस्लामी देश में रहने वाले) अमुस्लिम की हत्या कर दी वह स्वर्ग की सुगंध भी न पा सकेगा हालांकि स्वर्ग की सुगंध चालीस वर्ष की दूरी तक पहुंच रही होगी।” (सही बुख़ारी)

एक बार संदेष्टा मुहम्मद सल्ल. से कहा गयाः आप बहुदेववादियों को शाप दीजिए, तो मुहम्मद सल्ल. ने कहाः ” मैं शाप देने के लिए नहीं भेजा गया, लेकिन दयालुता बनाकर भेजा गया हूं,” (सही मुस्लिम)

संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दयालुता का एक उदाहरण यह भी है कि यदि आप नमाज़ पढ़ा रहे होते और उसी समय बच्चों के रोने की आवाज़ आपके कानों तक पहुंचती तो नमाज़ हल्की कर देते थे। हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः मैं नमाज़ के लिए खड़ा होता हूं और मेरी नियत यह होती है कि मैं उसे तम्बी करूंगा लेकिन जब किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनता हूं तो नमाज़ हल्की कर देता हूं, क्यों कि मुझे पता है कि उसके रोने के कारण उसकी माँ उस पर तर्स खाती है। (सही बुख़ारी, सही मुस्लिम)

Related Post