
ईश्वर है तो देखाई क्यों नहीं देता ? ईश्वर है तो किसी को धनवान और किसी को निर्धन क्यों बनाया ? ईश्वर है तो अत्याचारियों का हाथ क्यों नहीं पकड़ता ?
ईश्वर है तो देखाई क्यों नहीं देता ?
ईश्वर कोई हमारे और आप के जैसे नहीं कि जिसे मानव का देख लेना सम्भव हो, वह तो सम्पूर्ण संसार का रचयिता और पालनकर्ता है, उसके संबंध में कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह देखाई दे। बल्कि जो देखाई दे वह सीमित हो गया और ईश्वर की महिमा असीमित है। अंतिम ग्रन्थ क़ुरआन में बताया गया है कि संदेष्टा मूसा ने जब ईश्वर से प्रार्थना किया कि “हे ईश्वर! हमें अपना रूप देखा दे” तो उत्तर आया कि तुम हमें देख नहीं सकते परन्तु यदि तुम्हें मुझे देखने की इच्छा ही है तो इस पहाड़ पर देखो यदि वह अपने स्थान पर स्थित रहा तो तेरे लिए मुझे देखना सम्भव होगा। जब ईश्वर ने अपना प्रकाश प्रकट किया तो पड़ार टूकड़े टूकड़े हो गया और संदेष्टा मूसा बेहोश हो कर गिर पड़े।(सूरः आराफः143)
मानो हमारी इन आख़ों में ऐसी शक्ति ही नहीं कि इन से ईश्वर को देख पाना सम्भव हो। लेकिन इंसान जब अपनी सीमित बुद्धि से सोचता है तो समझने लगता है कि ईश्वर कोई मानव के समान है जो देखाई देना चाहिए।
और याद रखें कि संसार में विभिन्न चीज़ें हैं जो देखाई नहीं देतीं पर इंसान को उनके वजूद पर पूरा विश्वास होता है।
एक व्यक्ति जब तक बात करता होता है हमें उसके अन्दर आत्मा के वजूद का पूरा विश्वास होता है लेकिन जब ही वह धरती पर गिर जाता है, उसकी आवाज़ बन्द हो जाती है और शरीर ढीला पड़ जाता है तो हमें उसके अन्दर से आत्मा के निकल जाने का पूरा विश्वास हो जाता है हालाँकि हमने उसके अन्दर से आत्मा निकलते हुए देखा नहीं।
जब हम घर में बिजली की स्विच आन करते हैं तो पूरा घर प्रकाशमान हो जाता है और हमें घर में प्रकाश के वजूद का पूरा विश्वास हो जाता है। फिर जब उसी स्विच को आफ करते हैं तो प्रकाश चला जाता है हालाँकि हमने उसे आते और जाते हुए अपनी आँखों से नहीं देखा। उसी प्रकार जब हवा बहती है तो हम उसे देखते नहीं पर उसका अनुभव करके उसके बहने पर पूरा विश्वास प्राप्त कर लेते हैं।
तो जिस प्रकार आत्मा, बिजली और हवा को देखे बिना उसके अस्तित्व पर हमारा पूरा विश्वास होता है उसी प्रकार ईश्वर के वजूद की निशानियाँ पृथ्वी और आकाश स्वयं मानव के अन्दर स्पष्ट रूप में विधमान हैं और संसार का कण कण ईश्वर का परिचय कराता है। क्योंकि किसी चीज़ का वजूद बनाने वाले की माँग करता है, अब आप कल्पना कीजिए कि यह धरती, यह आकाश, यह नदी, यह पहाड़, यह पशु और यह पक्षी क्या यह सब एक ईश्वर के वजूद हेतु प्रमाण नहीं? प्रति दिन सूर्य निकलता है और अपने निश्चित समय पर डूबता है, स्वयं इनसान का एक एक अंग अपना अपना काम कर रहा है यदि अपना काम करना बन्द कर दे तो इनसान का वजूद ही स्माप्त हो जाए। यह सारे तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि ईश्वर है पर इस भौतिक दुनिया में उसे देख पाना इंसान के बस की बात नहीं।
एक दूसरा उदाहरण लीजिए, एक बच्चे के संबंध में कल्पना करें जो जन्म के तुरंत बाद अपनी माँ से अलग कर दिया गय और किसी और देश में भेज दिया गया। लेकिन वहां उसके अभिभावक उसे लगातार उसकी माँ के बारे में बताते रहते हैं कि उसकी माँ कैसी है?, वह कैसे उसे याद करती है?, उसकी क्या आदतों है?, वह सुबह और शाम क्या करती है? आदि. तो क्या बेटा केवल इस आधार पर उसे माँ मानने से इनकार कर देगा कि उसने तो उसे देखा ही नहीं है?. वह अपनी माँ को देखे बिना उसके गुणों को समझ सकता, उसके स्पर्श को महसूस कर सकता, उसकी तड़प दिल में ला सकता और उसके विचार से अपने दिल को बहला सकता है। अल्लाह का मामला भी कुछ ऐसा ही है कि हम उसे देखे बिना उसके गुणों को समझ कर उसका ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
ईश्वर है तो किसी को धनवान और किसी को निर्धन क्यों बनाया ?
कुछ लोग अज्ञानता के कारण यह भी कहते हैं कि यदि ईश्वर है तो किसी को धनवान और किसी को निर्धन क्यों बनाया, हम कहेंगे कि यह तो ऊपर वाले के अस्तित्व की पहचान है कि भाग्य में भिन्नता पाई जाती है, कोई धनवान है तो कोई निर्धन, हालांकि हर एक के पास बुद्धि, विचार और ज्ञान है और हर एक अधिक से अधिक प्राप्त करने की इच्छा रखता है लेकिन ऊपर वाले ने जितना उसके लिए तै कर रखा है उस से अधिक वह प्राप्त नहीं कर पाता। और इसके पीछे ईश्वर की बहुत बड़ी तत्वदर्शिता भी पाई जाती है कि एक दूसरों के काम आ सकें और सब की आवश्यकतायें पूरी होती रहें। क़ुरआन ने कहाः
“और तुम में से कुछ लोगों के दर्जे कुछ लोगों की अपेक्षा ऊँचे रखे, ताकि जो कुछ उसने तुमको दिया है उस में वह तुम्हारा परीक्षा ले।” (सूरः अल-अनआमः165)
यदि सारे लोग धनवान होते तो लोगों का जीवन गुज़ारना मुश्किल हो जाता और एक का हित दूसरे से प्राप्त नहीं हो सकता था। हर एक दूसरे पर बड़ापन का इज़हार करता जिससे देश और इंसान का हित प्रभावित होता। जब कि भाग्य में भिन्नता पाये जाने से हर एक की आवश्यकतायें दूसरों से पूरी होती हैं।
फिर जो यहाँ किसी प्रकार की नेमत से वंचित रहा उसे मरनोपरांत जीवन में अच्छा से अच्छा बदला मिलने वाला है या वह दुनिया में किसी एक नेमत से वंचित है तो ऊपर वाले ने उसे दूसरी अन्य नेमत दे दी है। फिर नर्धनों को मनोवैज्ञानिक और स्वस्थ का ऐसा आनंद प्रदान किया है कि बड़े बड़े धनवान उस से वंचित हैं। यही नहीं बल्कि निर्धनों के प्रति सहानुभूति हेतु धनवानों पर अनिवार्य ठहराया कि वे अपने मालों में से निर्धनों पर खर्च करें ताकि समाज में शांति स्थापित रहे और धनवानों और निर्धनों के बीच प्रेम का वातावरण बना रहेः
“अल्लाह के माल में से उनको दो जो उसने तुम्हें दिया है।” (सूरः अल-नूरः 33)
उसी प्रकार ऊपर वाले ने मन में अपनी नेमतों का महत्व बैठाने के लिए अपनी तत्वदर्शिता से हर पैदा की गई चीज़ का विपरित भी पैदा किया है। जैसे फरिश्ता और शैतान, रात और दिन, अच्छा और बुरा, ख़ूबसूरत और बद सूरत। फिर शरीर, बुद्धि और शक्ति के बीच भी अंतर रखा, किसी को धनवान और किसी को निर्धन, किसी को स्वस्थ्य और किसी को बीमार, किसी को बुद्धिमान और किसी को बुद्धिहीन बनाया ताकि जिसे ईश्वर ने स्वस्थ्य रखा है वह अल्लाह के उपकार को पहचान सके। क्यों कि उपकार का सही महत्व उपकार से वंचित होने के बाद ही समझ में आता है, आँख का महत्व अंधे को देख कर समझ में आता है, कान का महत्व बहरे को देख कर कमझ में आता है, ज़बान का महत्व गुंगे को देख कर समझ में आता है, पैर का महत्व पैर कटे को देख कर समझ में आता है। एक व्यक्ति जब अपने समाज में विकलांग को देखेगा तो अपने ऊपर ईश्वर की नेमतों को भली-भांति पहचान सकेगा, ईश्वर के इनाम का शुक्र अदा करेगा, उससे भलाई का सवाल करेगा और उसे यह विश्वास होगा कि ईश्वर हर चीज़ पर शक्ति रखता है। उसी प्रकार यदि विकलांग कमज़ोरी की स्थिति में है तो उसका ऊपर वाले से अच्छा सम्पर्क बन सकता है क्यों कि सुख पाने से इंसान में सरकशी आ जाती है।
फिर यदि दुनिया में ईश्वर ने किसी को किसी उपकार से वंचित रखा है तो यह उसके हक़ में बुरा नहीं बल्कि उत्तम है, इस में उनका हित छुपा होता है। एक प्रवचन में मुहम्मद सल्ल. ने कहाः ” अल्लाह किसी दास के साथ किसी प्रकार का अच्छा मामला करना चाहता है तो उसे किसी कष्ट में डाल देता है।” मानो नेक बन्दों के लिए सांसारिक कष्ट उपहार के समान है।
यदि ईश्वर है तो अत्याचारियों का हाथ क्यों नहीं पकड़ताः
यदि ऊपर वाला चाहता तो बिगाड़ पैदा करने वालों और शांति को भंग करने वालों को कठोर से कठोर सज़ा देता लेकिन उसने अपनी दया से इस लोक को परीक्षा-स्थल बनाया है। क़ुरआन ने कहाः
“जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है।” (क़ुरआनः 67:2)
अतः ऊपर वाला अपने दासों पर बड़ा दयालू है, यदि वह चाहता तो उनकी अवज्ञा की उन्हें तुरंत सज़ा दे देता लेकिन वह एक समय तक टालता रहता है। जब वह समय आ जाता है तो उसकी यातना को कोई एक सिकंड के लिए भी टाला नहीं जा सकता। क़ुरआन ने इसी तथ्य की ओर संकेत कियाः
“तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है। यदि वह उन्हें उस पर पकड़ता जो कुछ उन्होंने कमाया है तो उनपर शीघ्र ही यातना ला देता। नहीं, बल्कि उनके लिए तो वादे का एक समय निशिचत है। उससे हटकर वे बच निकलने का कोई मार्ग न पाएँगे।” (क़ुरआनः 18:58)