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इस्लाम ईश्वर को किसी रूप में नहीं मानता बल्कि ईश्वर की सही और स्वभाविक पहचान कराता है कि जब ऊपर वाले ने हमें बनाया

नास्तिक ईश्वर का इनकार करते हैं हालांकि बिना सृष्टा के सृष्टि का वजूद असम्भव है, फिर विश्व की रचना में संतुलन का पाया जाना जिसमें चंद्रमा और सूर्य और बड़े बड़े नक्षत्र हैं जो घड़ी के पुर्जों के समान चल रहे हैं इस बात का प्रमाण हैं कि इस संसार का एक तत्वदर्शी और सर्वशक्तिमान सृष्टा है।

नास्तिकों की तुलना में अन्य धर्मों के मानने वाले -इस्लाम के अलावा- ईश्वर को तो मानते हैं परन्तु उसे पहचानते नहीं हैं। इसी लिए ईश्वर को विभिन्न रूप में मानते हैं अथवा ईश्वर की ख़ुशी प्राप्त करने हेतु देवताओं और भगवानों को माध्यम बनाते हैं। कुछ लोग मात्र एक ईश्वर की पूजा का दावा करते हैं परन्तु उसकी सही पहचान न होने के कारण पथभ्रष्टता में पड़े हुए हैं।

जब कि इस्लाम ईश्वर को किसी रूप में नहीं मानता बल्कि ईश्वर की सही और स्वभाविक पहचान कराता है कि जब ऊपर वाले ने हमें बनाया, हमारे पूर्वजों को बनाया, धरती और आकाश बनाया, हमारे भोजन हेतु विभिन्न प्रकार के अन्न पैदा किए तो हमें मात्र उसी से डरना चाहिए, उसी से आशा रखना चाहिए, उसी को लाभ एवं हानि का मालिक समझना चाहिए तथा उसी के लिए पूजा के प्रत्येक काम विशेष करने चाहिएं।

इस्लाम में सब से बड़ा पाप शिर्क (बहुदेववाद) है, अर्थात् ऊपर वाले ईश्वर के अलावा किसी अन्य से भय रखा जाये, किसी अन्य को लाभ एवं हानि का मालिक समझा जाये, किसी अन्य को बीमारी दूर करने वाला, संतान देने वाला माना जाये, किसी अन्य के सामने माथा टेका जाये, किसी अन्य से प्रार्थना की जाये, किसी अन्य के समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ जाये… आदि।

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