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आज मानव-जगत का कल्याण इस्लाम में ही है क्यों कि इस्लाम मानवता का धर्म है, क़ुरआन मानवता का ग्रन्थ है तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मानवता के संदेष्टा हैं।

जब तक मुस्लिम समाज इस्लामी शिक्षाओं को मज़बूती से थामे रहा हर प्रकार के मतभेद, भिन्नता तथा बिगाड़ से सर्वथा सुरक्षित रहा और उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन न आ सका। इस्लाम के उत्थान काल में इस्लामी जगत की शक्ति का रहस्य यही था और पतन के इस युग में उन्नति पाने का रहस्य भी यही है।
यह धरती विभिन्न नियमों, सिद्धांतों और संस्कृतियों पर सम्मिलित समाज का अनुभव कर चुकी है। अब यह कहना बिल्कुल सच होगा कि इस्लामी नियम उन सारे नियमों में जिसे मानवता ने आज तक परखा है श्रेष्ठ, उत्तम और अति लाभदायक है। इस का आगमन ही इस लिए हुआ है ताकि जीवन की का मार्गदर्शन करे। उसके लगाम को थामे रहे और मानव समुदाय के सामने ऐसा जीवन व्यवस्था पेश करे जिसकी रोशनी में वह अपना रास्ता तै कर सके। इस्लाम ने इस्लामी समुदाय और इस्लामी समाज को अति ठोस और संतुलित नियम पर स्थापित किया है जिसकी बुंयाद फज़ीलत और तक़वा (संयम) पर रखी गई है। और उसे मनोकामनाओं तथा कामवासनाओं पर क़ाबू पाने के लिए हर प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है। अतः इस्लामी नियम का आधार इस बात पर है कि लोग अच्छे आचरण से सुसज्जित हो जाएं, इसकी ओर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  ने इस प्रकार संकेत कियाः “मुझे इस लिए भेजा गया है ताकि नैतिकता को शिखर तक पहुंचा दूं।” (सहीहुल-जामिअः 2349)

क्या इस्लाम के अलावा कोई अन्य धर्म मानवता का धर्म हो सकता है इस संबंध में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद रहिमहुल्लाह लिखते हैं:

“मुझे पता चला कि जिस धर्म को संसार इस्लाम के नाम से जानता है वास्तव में वही धार्मिक मतभेद के प्रश्न का वास्तविक समाधान है। इस्लाम दुनिया में कोई नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहता बल्कि उसका आंदोनक स्वंय उसके बयान के अनुसार मात्र यह है कि संसार में प्रत्येक धर्म के मानने वाले अपनी वास्तविक और शुद्ध सत्य पर आ जाएं और बाहर से मिलाई हुई झूटी बातों को छोड़ दें- यदि वह ऐसा करें तो जो आस्था उनके पास होगी उसी का नाम क़ुरआन की बोली में इस्लाम है।
क़ुरआन कहता है कि खुदा की सच्चाई एक है, आरम्भ से एक है, और सारे इंसानों और समुदायों के लिए समान रूप में आती रही है, दुनिया का कोई देश और कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अल्लाह के सच्चे बन्दे न पैदा हुए हों और उन्होंने सच्चाई की शिक्षा न दी हो, परन्तु सदैव ऐसा हुआ कि लोग कुछ दिनों तक उस पर जमे रहे फिर अपनी कल्पना और अंधविश्वास से भिन्न भिन्न आधुनिक और झूठी बातें निकाल कर इस तरह फैला दीं कि वह अल्लाह की सच्चाई इंसानी मिलावट के अंदर संदिग्ध हो गई।
अब आवश्यकता थी कि सब को जागरुक करने के लिए एक विश्य-व्यापी आवाज़ लगाई जाए, यह इस्लाम है। वह इसाई से कहता है कि सच्चा इसाई बने, यहूदी से कहता है कि सच्चा यहूदी बने, पारसी से कहता है कि सच्चा पारसी बने, उसी प्रकार हिन्दुओं से कहता है कि अपनी वास्तविक सत्यता को पुनः स्थापित कर लें, यह सब यदि ऐसा कर लें तो वह वही एक ही सत्यता होगी जो हमेशा से है और हमेशा सब को दी गई है, कोई समुदाय नहीं कह सकता कि वह केवल उसी की सम्पत्ती है।
उसी का नाम इस्लाम है और वही प्राकृतिक धर्म है अर्थात् ईश्वर का बनाया हुआ नेचर, उसी पर सारा जगत चल रहा है, सूर्य का भी वही धर्म है, ज़मीन भी उसी को माने हुए हर समय घूम रही है और कौन कह सकता है कि ऐसी ही कितनी ज़मीनें और दुनियाएं हैं और एक अल्लाह के ठहराए हुए एक ही नियम पर अमल कर रही हैं।
अतः क़ुरआन लोगों को उनके धर्म से छोड़ाना नहीं चाहता बल्कि उनके वास्तविक धर्म पर उनको पुनः स्थापित कर देना चाहता है। दुनिया में विभिन्न धर्म हैं, हर धर्म का अनुयाई समझता है कि सत्य केवल उसी के भाग में आई है और बाक़ी सब असत्य पर हैं मानो समुदाय और नस्ल के जैसे सच्चाई की भी मीरास है अब अगर फैसला हो तो क्यों कर हो? मतभेद दूर हो तो किस प्रकार हो? उसकी केवल तीन ही सूरतें हो सकती हैं: एक यह कि सब सत्य पर हैं, यह हो नहीं सकता क्योंकि सत्य एक से अधिक नहीं और सत्य में मतभेद नहीं हो सकता, दूसरी यह कि सब असत्य पर हैं इस से भी फैसला नहीं होता क्योंकि फिर सत्य कहाँ है? और सब का दावा क्यों है ? अब केवल एक तीसरी सूरत रह गई अर्थात सब सत्य पर हैं और सब असत्य पर अर्थात असल एक है और सब के पास है और मिलावट बातिल है, वही मतभेद का कारण है और सब उसमें ग्रस्त हो गए हैं यदि मिलावट छोड़ दें और असलियत को परख कर शुद्ध कर लें तो वह एक ही होगी और सब की झोली में निकलेगी। क़ुरआन यही कहता है और उसकी बोली में उसी मिली जुली और विश्वव्यापी सत्यता का नाम “इस्लाम” है।”

आज मानव-जगत का कल्याण इस्लाम में ही है क्यों कि इस्लाम मानवता का धर्म है, क़ुरआन मानवता का ग्रन्थ है तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मानवता के संदेष्टा हैं। लेकिन अज्ञानता का बुरा हो कि लोग आज उसी का विरोद्ध कर रहे हैं जो उनके कल्याण हेतु आया है। मैं यह मानता हूँ कि ग़लती मुसलमानों की है कि उन्हों ने यह सोच कर उनसे सच्चाई को छुपाए रखा कि कहीं वे बुरा न मान जायें, और ज़ाहिर है कि एक व्यक्ति किसी चीज़ की सच्चाई को नहीं जानेगा तो उसका विरोद्ध करेगा ही।

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