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इस्लाम का अर्थ होता है सुपुर्दगी और समर्पण अर्थात् अपने आपको बिना किसी शर्त के अल्लाह के हवाले कर देना। उसकी इच्छा के अनुसार पूर्ण रुप से नत मस्तक हो जाना।

इस्लाम का अर्थ होता है सुपुर्दगी और समर्पण अर्थात् अपने आपको बिना किसी शर्त के अल्लाह के हवाले कर देना। उसकी इच्छा के अनुसार पूर्ण रुप से नत मस्तक हो जाना। इस्लाम के इस शाब्दिक अर्थ से ही ज्ञात होता है कि इस्लाम का संस्थापक कोई मानव नहीं जैसा कि अन्य धर्मों का है उदाहरणस्वरूप बुद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध हैं, सिख धर्म के संस्थापक गुरूनानक हैं, जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी हैं, हिन्दू धर्म भी अपने गुरूओं का धर्म कहलाता है जबकि इस्लाम का संस्थापक कोई मानव नहीं। इसका अर्थ ही होता है एक ईश्वर के समक्ष पूर्ण समर्पण।

अधिकांश लोग इसी तथ्य को न समझ सके जिसके कारण यह कहने लगे कि इस्लाम मुहम्मद साहब का बनाया हुआ धर्म है, अथवा नया धर्म है जिसके संस्थापक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। या सातवीं शताब्दी से पहले इसका कोई वजूद नहीं था। हालांकि यह बात सत्य के बिल्कुल विरोद्ध है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अवश्य सातवीं शताब्दी में पैदा हुए परन्तु उन्होंने इस्लाम की स्थापना नहीं की बल्कि उसी संदेश की ओर लोगों को आमंत्रित किया जो सारे संदेष्टाओं के संदेशों का सार रहा।

ईश्वर ने सर्वप्रथम विश्व के एक छोटे से कोने धरती पर मानव का एक जोड़ा पैदा किया जिनको आदम तथा हव्वा के नाम से जाना जाता है। उन्हीं दोनों पति-पत्नी से मनुष्य की उत्पत्ति का आरम्भ हुआ जिन को कुछ लोग मनु और शतरूपा कहते हैं तो कुछ लोग एडम और ईव जिनका विस्तार पूर्वक उल्लेख पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन (230-38) तथा भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व खण्ड 1 अध्याय 4 और बाइबल उत्पत्ति (2/6-25) और दूसरे अनेक ग्रन्थों में किया गया है।

फिर जिस तरह एक कम्पनी कोई सामान बनाती है तो उसके प्रयोग करने का नियम भी बताती है उसी तरह ईश्वर ने जब मानव को पैदा किया तो उसका मार्ग-दर्शन भी किया ताकि मानव अपनी उत्पत्ति के उद्देश्य से अवगत रहे। अतः ईश्वर ने मानव को संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य से अवगत करने के लिए हर युग में मानव में से कुछ पवित्र महा-पुरुषों का चयन किया ताकि वे मानव का मार्गदर्शन करें। वे हर देश और हर युग में भेजे गए, उनकी संख्या 1 लाख 24 हज़ार तक पहुंचती है। वे अपने समाज के श्रेष्ठ लोगों में से होते थे। हर प्रकार के दोषों से मुक्त होते थे। उन सब का संदेश एक ही था कि केवल एक ईश्वर की पूजा की जाए, मुर्ती पूजा से बचा जाए। सारे मानव समान हैं, उन में जाति अथवा वंश के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं। उनका संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि एक देश का दूसरे देशों से संबंध नहीं था और मानव बुद्धि भी सीमित थी लेकिन जब सातवी शताब्दी में मानव बुद्धि प्रगति कर गई और एक देश का दूसरे देशों से संबंध बढ़ने लगा तो ईश्वर ने हर देश में अलग अलग संदेश भेजने का क्रम समाप्त करते हुए विश्वनायक का चयन किया। जिन्हें हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हैं। उनके पश्चात कोई संदेष्टा आने वाला नहीं है। ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा और आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया। उन्होंने मानव को यह ईश्वरीय संदेश पहुंचाया कि ईश्वर केवल एक है केवल उसी एक ईश्वर की पूजा होनी चाहिए। सारे मानव एक ही ईश्वर की रचना हैं और उनके माता पिता भी एक हैं। प्रथम मनुष्य का धर्म इस्लाम था। उन्हों ने शताब्दियों से मन में बैठी जातिवाद और भेद-भाव की भावनाओं का खंडन किया। इस लिए यह कहना ग़लत होगा कि इस्लाम कोई नया धर्म है।

फिर यह भी याद रखें कि इस्लाम में 6 बोतों पर विश्वास रखना हर मुसलमान के लिए आवश्यक है, जिन्हें हम ईमान के स्तंभ कहते हैं। यदि कोई मुसलमान उनमें से किसी एक का इनकार कर दे तो इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा उनमें से एक है ईश्वर के भेजे हुए संदेष्टाओं पर विश्वास रखना अर्थात् इस बात पर विश्वास रखना कि ईश्वर ने हर युग तथा देश में मानव मार्गदर्शन हेतु संदेष्टाओं को भेजा। अतः जो धर्म पहले इंसान आदम का था वही धर्म अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का था। आपने कभी यह दावा नहीं किया कि वह कोई नया धर्म लेकर आए हैं, हाँ बार बार यही कहते रहे कि वह उसी इस्लाम को पूर्ण करने आये हैं जिसकी शिक्षा आदि पुरुष ने दिया था। यह बात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने अंतिम छण तक कहते रहे।

आज भी हर मुसलमान इस बात की आस्था रखता है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस्लाम के संस्थापक नहीं बल्कि उसके अन्तिम संदेष्टा हैं। ईश्वर ने विश्व नायक को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा, आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है। अब उनके आगमण के बाद किसी और का अनुसरण नहीं हो सकता। जैसे किसी देश में भारत का राजदूत भेजा जाता है तो राजदूत को अपने आदेश का पालन कराने का अधिकार उसी समय तक रहता है जब तक अपने पद पर आसीन रहे। जब कार्य अवधि गुज़रने के बाद दूसरा राजदूत आ जाए तो पहला राजदूत अपना आदेश नहीं चला सकता क्योंकि उसकी कार्य-अवधि समाप्त हो चुकी है।

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