
सेवक का यह अधिकार है कि उसे कष्ट में न डाला जाए। उसे उसकी शक्ति से अधिक काम न दिया जाए। कोई ऐसा काम दिया भी तो उसमें उसकी मदद की जाए।
मई की प्रथम तिथि विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाई जाती है, जिस दिन मजदूरों के अधिकारों और कर्तव्यों की बातें होती हैं। वह मजदूर जिनके परिश्रम से दुनिया में रंगीनियां हैं। वह मजदूर जिनके सहारे हम आराम की जींदगी गुज़ार रहे हैं। वह मजदूर जो खून पसीना एक करके हम तक आहार पहुंचा रहे हैं। लेकिन अजीब विडंबना है कि आज भी मजदूरों की यह श्रेणी बहुत दुखद जीवन गुज़ार रही है, वह हमारे लिए मेहनत करते हैं, हमारे आराम के लिए अपने आराम को त्याग देते हैं, लेकिन वे आर्थिक जीवन में अभी भी बहुत पीछे हैं, बहुत पीछे बल्कि अधिक पीछे होते चले जा रहे हैं, और उनकी कड़ी मेहनत के फलस्वरूप पूंजीपति आगे बढ़ते जा रहे हैं।
ग़रीबी कोई पाप नहीं:
अल्लाह ने अपनी महानता और तत्वदर्शिता से अपनी सृष्टि में प्रावधान का वितरण किया है, किसी को धनी बनाया तो किसी को गरीब, किसी को बेनियाज़ किया तो किसी को मोहताज, किसी को मालिक बनाया तो किसी को नोकर, इस अंतर का मुख्य उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति एक दूसरे के काम आ सके। एक की जरूरत दूसरे से पूरी हो सके। अगर सारे एक ही श्रेणी के लोग हो जाते तो बहुत सारे हित निलंबित ठहरते।
चूंकि हमारी जरूरतें भिन्न भिन्न होती हैं। प्रत्येक के लिए सारा काम कर लेना संभव नहीं होता। अतः हमारे लिए आसानी पैदा कर दी गई कि जो जैसा काम करने की योग्यता रखता हो उस से हम अपना काम करा लें। लेकिन इस्लाम ने नौकरों और कर्मचारियों के अधिकार भी बता दिया जिन्हें अदा करना अत्यंत आवश्यक है।
मज़दूर को कष्ट में न डाला जाएः
सेवक का यह अधिकार है कि उसे कष्ट में न डाला जाए। उसे उसकी शक्ति से अधिक काम न दिया जाए। कोई ऐसा काम दिया भी तो उसमें उसकी मदद की जाए। अगर किसी तरह से कोताही करे तो उसे सख्त सुस्त या बुरा भला न कहा जाए। हर मामले में नरमी का मामला किया जाए। क्योंकि सहजता प्रत्येक मामले में आवश्यक है। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के एक सेवक अनस कहते हैं:
“मैं ने दस वर्ष तक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा की, अल्लाह की क़सम! आपने किसी काम के प्रति ऊंह तक नहीं कहा, न आपने किसी चीज़ के बारे में कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया या ऐसा क्यों नहीं किया।” (बुख़ारी, मुस्लिम)
मारूर बिन सुवैद रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि मैंने अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हू को देखा कि वह एक पोशाक पहन रखे थे, और उनके दास के बदन पर भी वैसी ही पोशाक थी, मैंने इसके बारे में उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि नबी सल्ल. के युग में एक दिन उन्होंने एक आदमी से गालम गलोच कर लिया, और उसे उसकी माँ की गाली दे दी, वह आदमी अल्लाह के रसूल के पास आया और आपसे उसका उल्लेख किया तो आप सल्ल. ने कहा: ऐ अबू ज़र! तेरे अंदर अज्ञानताकाल की बू बास पाई जाती है। वह तुम्हारे भाई हैं, जिन्हें अल्लाह तुम्हारे अधीन रखा है, अल्लाह जिसके अधीन उसके भाई क्या हो उसे चाहिए कि जो खुद खाए वही उसे खिलाए जो खुद पहने वही उसे पहनाए, उसे ऐसे काम असुविधा न दे जो उसके लिए कठिन हो, और अगर ऐसे काम की जिम्मेदारी सौंप ही दे तो उसकी मदद करे। (बुख़ारी, मुस्लिम)
अगर किसी तरह की कोई कोताही और ग़लती हो जाती है तो उसे माफ कर देना चाहिए क्योंकि माफ कर देना ईमान वालों की पहचान है। और जो सृष्टि से क्षमा का मामला करता है अल्लाह उसके पापों को क्षमा कर देता हैः
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने सेवक को कितनी बार माफ करूँ? अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) चुप रहे, फिर उसने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने सेवक को कितनी बार माफ करूँ? तब रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: प्रतिदिन सत्तर बार। (सुनन अबी दाऊद, सुनन तिर्मिज़ी)
मालिक को चाहिए कि नोकर को गाली देने, बुरा भला कहने, मारने पीटने, अपमानित करने, डराने-धमकाने से बचेः
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास बैठा, उसने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे पास कुछ गुलाम हैं, वे मुझे झुठलाते हैं, मेरी विश्वासघात करते हैं, मेरी अवज्ञा करते हैं, उन्हें मैं गाली देता और मारता हूँ। आप मुझे बताइए कि मैं उनके प्रति कैसा हूँ? आप ने कहा: जितनी उन्होंने विश्वासघात की, तेरी अवज्ञा की, और तुझे झुठलाया और फिर तुमने उन्हें सज़ा दी यह सब गिन लिया जाएगा, यदि तुम्हारा उन्हें सजा देना उतना ही होगा जितना उन्होंने गलती की है तो तेरे लिए मामला बराबर होगा। न तो तुम्हारी पकड़ होगी और न ही उसकी पकड़ होगी। और अगर तुम्हारा उन्हें सजा देना उनकी गलतियों से कम होगा तो तुम्हारे लिए यह अनुग्रह की बात होगी, और अगर तुम्हारा उन्हें सजा देना उनकी गलतियों से अधिक होगा तो जितनी सजा ज्यादा होगी कल क़यामत के दिन उनके बराबर तुम्हें सजा मिलेगी। (सुनन तिर्मिज़ी)
मालिक पर सेवक का यह अधिकार है कि मालिक जैसा खाता है सेवक को भी वैसा ही खिलाए, उसे अच्छा से अच्छा कपड़ा पहनाए, अगर उसका स्वास्थ्य खराब हो जाता है तो उसका इलाज कराए और उसे अपने धार्मिक कर्तव्य बजा लाने का अवसर प्रदान करे।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: जब तुम्हारा सेवक तुम्हारे लिए खाना लेकर आए तो अगर उसे अपने साथ बैठाकर खिला नहीं सकते तो खाने में से कुछ हिस्सा उसे दे दो। (बुखारी, मुस्लिम)
मज़दूरी समय पर दे दी जाएः
नौकरों के अधिकारों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा मजदूरी के निर्धारण का आता है कि मजदूरी पहले स्पष्ट कर दी जाए, इसे अस्पष्ट न रखा जाए:
“रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मजदूर की मजदूरी निर्धारित किए बिना मजदूर रखने से मना फ़रमाया”। ( अत्तालीक़ात अर्रज़िया 440/2)
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी को उसकी मज़दूरी कम न देते थे, बल्कि ऐसा करने वालों के संबंध में सख़्त वईद बताईं, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूरी मजदूरी अदा करने की ताकीद करते हुए कहा किः
“मजदूर की मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर दो”। (अत्तर्ग़ीब वत्तर्हीब: 3/78)
मज़दूरों का हक़ मारने वालों को चेतावनीः
मजदूर की मजदूरी अदा करने में टालमटोल नहीं होना चाहिए। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः
“मैं महा-प्रलय के दिन तीन व्यक्तियों का दुश्मन हूंगा उनमें से एक वह है जो किसी मजदूर को मजदूरी पर रखे उससे पूरा काम ले और मजदूरी न दे।” (सही बुख़ारी: 2227)
यहां उन साहूकारों के लिए चेतावनी है जो गरीबों के खून पसीना की कमाई हड़प जाते हैं, हमेशा इस तरह की घटनाओं सुनने को मिलती हैं, याद रखें आज आपने गरीबों का माल तो सरलतापूर्वक पचा लिया है लेकिन कल क़यामत के दिन वही आपके हरीफ़ बनकर अल्लाह के दरबार में हाज़िर होंगेः
एक दिन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा से पूछा था: जानते हो मुफ्लिस किसे कहते हैं? लोगों ने कहा: जिसके पास दिरहम और दीनार न हो वह हमारी नज़र में मुफ्लिस है। जवाब मिला: नहीं महा-प्रलय के दिन मुफ़लिस वह होगा जो नमाज़, रोज़ा, और सदकात के साथ आएगा, लेकिन उसने किसी को गाली दी होगी, किसी को मारा होगा, किसी का खून बहाया होगा, किसी पर आरोप लगाया होगा, किसा का माल खाया होगा, अतः उसकी सारी नेकियाँ उसके दावेदारों को दे दी जाएंगी और जब उसके पास नेकी न रहेगी तो दावेदारों के पाप उसके खाते में लिख दिए जाएंगे और उसे नरक में डाल दिया जाएगा। (सही मुस्लिम: 2581)
आपका व्यवहार मजदूर के साथ ऐसा होना चाहिए कि उसे किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक कष्ट न हो, उसकी ड्यूटी का समय निर्धारित होना चाहिए, उसे सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए, उसे आराम करने का मौका मिलना चाहिए।
मजदूरों की जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य:
जहां इस्लाम ने मज़दूरों के अधिकार बताए हैं वहीं यह भी आदेश दिया है कि उनकी कुछ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य भी हैं, जिसकी ओर कुरआन ने दो संक्षिप्त शब्दों में संकेत दिया हैः
“इन दोनों में से एक ने कहा कि अब्बा जी! आप उन्हें मजदूरी पर रख लीजिए, क्योंकि जिन्हें आप मजदूरी पर रखें उनमें सबसे अच्छा वह है जो मजबूत और भरोसेमंद हो।” (सूरः अल-कसस: 26)
इस आयत में दरअसल संकेत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के किस्से की ओर है कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने दो लड़कियों के जानवर को पानी पिला दिया तो इन दो लड़कियों ने अपने पिता के पास जाकर पूरी घटना सुनाई और कहा कि आप उन्हें मज़दूर रख लीजिए क्योंकि वे ताक़तवर हैं और भरोसेमंद भी।
पता यह चला कि मज़दूर की जिम्मेदारी है कि वह स्वयं काम की क्षमता रखता हो, काम करने की भी क्षमता रखता हो, काम को अमानत दारी से निपटा रहा हो, समय का पाबंद हो, अपने काम से मतलब रखता हो, समर्पण और लगन से काम करता हो। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:
إنَّ اللهَ تعالى يُحِبُّ إذا عمِلَ أحدُكمْ عملًا أنْ يُتقِنَهُ ۔ صحيح الجامع: 1880
अल्लाह पसंद करता है कि जब तुम में से कोई काम करे तो उसे अच्छे तरीके से अंजाम दे। (सहीहुल जामिअ़: 1880)
यह थीं कुछ बातें मजदूर दिवस के असवर पर लेकिन हम यहाँ यह कहना चाहेंगे कि इस्लाम मज़दूरों के लिए वर्ष में एक बार दिवस मनाने का समर्थक नहीं बल्कि उसे हर समय उसका अधिकार देने का आदेश देता है। यक़ीन कीजिए कि मजदूर को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उसके नाम पर कोई दिन मनाया जाए। उसका हित उसकी मजदूरी से जुड़ा है और बस। आज अगर मजदूरों के संबंध में इस्लामी शिक्षाओं को अपना लिया जाए तो समाज में शांति स्थापित हो सकती है, लूट घसोट और अपराध पर काबू पाया जा सकता है, और दुनिया शांति का गहवारा बन सकती है।