
15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस मनाया जाता है।
15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस मनाया जाता है। ऊपर वाले ने इस दुनिया को भौतिक कारणों से जोड़ दिया है, इस दुनिया में रहते हुए यहाँ की नेमतों से लाभ उठाना हमारी जिम्मेदारी है, ब्रह्मांड की नेमतों से किस हद तक हम लाभ उठा सकते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे युवाओं में शिक्षा का अनुपात क्या है। क्योंकि आज शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ दिया गया है, इस दुनिया में जीवन बिताने के लिए किसी भी व्यवसाय का चयन करना बहुत जरूरी है। और युवा हमारा भविष्य हैं, उन्हीं के कंधों पर समाज निर्माण का बोझ आने वाला है।
इस्लाम कमाने पर उभारता और मेहनत की कमाई पर गुज़ारा करने की प्रेरणा देता है। इस्लाम ने अल्लाह की इबादत के बाद हलाल कमाई को अनिवार्य दायित्व ठहराया है। नमाज खत्म होते ही आदेश दिया गया कि पृथ्वी में फैल कर आजीविका की खोज करो। असंख्य हदीसें आजीविका कमाने पर उभारती हैं: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:
“सबसे बेहतर कमाई अपने हाथ की कमाई है और अल्लाह के नबी दाऊद अलैहिस्सलाम अपने हाथ की कमाई खाते थे।” (बुख़ारीः 2072)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: ” अपने हाथ की कमाई सबसे पवित्र आजीविका है” (सहीहुल जामिअ़: 1566)
यह भी कहा: “अपनी मेहनत से कमा कर खाना सबसे अच्छा भोजन है”। (सही बुख़ारी: 2072)
किसी ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछाः कौन सी कमाई शुद्ध कमाई है ? तो आप ने कहा:
“अपने हाथ की कमाई और हर वह सच्चा कारोबार जिस में धोखा न हो”। (सहीहुल जामिअ़: 1033)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खेती करने पर भी उभारा और कहा किः
“जो मुसलमान खेती करता है या पौधे लगाता है उसमें से कोई पक्षी मानव या जानवर खाता है तो उसे दान का सवाब मिलता है।” ( बुख़ारीः2320 मुस्लिमः 1552)
खेती बारी का महत्व जताने के लिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह आदेश दिया कि जिसने किसी पृथ्वी को पुनर्जीवित किया वह उसका मालिक बन जाता हैः
“जिसने किसी मृत भूमि को पुनर्जीवित किया वह उसका मालिक है।” ( सही अबू दाऊदः 3073)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने व्यापार और व्यवसाय का महत्व जताते हुए कहाः
“भरोसेमंद और सच्चा व्यापारी नबियों सिद्दीक़ीन और शहीदों के साथ उठाया जाएगा।” (तिर्मिज़ीः 1209)
बल्कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कमाने को भी उपासना और इबादत की श्रेणी में रखा हैः
एक बार मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा (सहयोगी) का गुजर एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो बड़ी मेहनत कर रहा था। सहाबा ने कहा ऐ अल्लाह के संदेष्टा! काश इस आदमी की मेहनत अल्लाह के रास्ते में होती? आपने कहा: अगर वह मेहनत और परिश्रम अपने मासूम बच्चों के लिए कर रहा है तो उसका ये काम अल्लाह के रास्ते में ही है और अगर अपने बुढ़े माता-पिता के लिए कर रहा है तो यह भी अल्लाह के रास्ते में है और अगर स्वयं के लिए कर रहा है और उद्देश्य यह है कि लोगों के सामने हाथ फैलाने से बचा रहे तो यह परिश्रम भी अल्लाह के रास्ते में है। हाँ! अगर उसकी यह मेहनत अधिक माल प्राप्त कर के लोगों पर श्रेष्ठता जताने और लोगों को देखाने के लिए है, तो उसकी सारी मेहनत शैतान के रास्ते में समझी जाएगी। (तबरानीः रावीः हज़रत काब बन उज्रा रज़ियल्लाहु अन्हु)
नबियों का दायित्व धर्म प्रचार था, फिर भी उन्होंने विभिन्न पेशे अपनाये, नूह अलैहिस्सलाम ने बढ़ई का काम किया, इदरीस अलैहिस्सलाम दर्जी थे, दाऊद अलैहिस्सलाम लोहार थे, मूसा अलैहिस्सलाम ने मद्यन में मजदूरी की, और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बकरियां चराईं और नबी बनाए जाने से पहले व्यापार किया। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के के साथियों ने भी आपके आदर्श को अपनाया, उन में कोई कारीगर थे, कोई व्यापारी थे तो कोई किसान थे। मानो मुसलमान के लिए कोई व्यवसाय दोष की बात नहीं, कोई पेशा अपनाकर हलाल कमाई एकत्र कर सकता है।
इससे ज्ञात हुआ कि इस्लाम की दृष्टि में कोई भी वैध व्यवसाय अपनाया जा सकता है, यह अवधारणा सही नहीं कि फलाँ काम हमारे योग्य नहीं तो अमुक पेशा अन्य जातियों का है।
इस्लाम ने बेरोज़गारी को अच्छी नज़र से नहीं देखा और ऐसे व्यक्ति को समाज में घटिया माना गया जो कोई व्यवसाय अपनाया नहीं करता। इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जब किसी को देखते और उसे स्वस्थ्य पाते तो पूछते कि वह कोई काम भी करता है, जब प्रकट होता है कि कोई व्यवसाय अपनाए हुआ नहीं है तो वह उनकी नज़र से गिर जाता था।
बेरोजगारी को दूर करने के लिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मामूली व्यवसाय भी अपनाने की प्रेरणा दीः
” तुम में से किसी ज़रूरतमंद आदमी का यह रवैया कि वह रस्सी लेकर जंगल जाए और मेहनत से लकड़ियों की एक गठरी अपनी कमर पर लाद कर लाए और बेचे, इस तरह अल्लाह की तौफ़ीक़ से वह सवाल करने के अपमान से स्वयं को बचा ले, इससे बेहतर है कि वह लोगों के सामने हाथ फैलाए, फिर चाहे वे उसे दें या न दें। (सही बुख़ारीः 3883)
अर्थात् लकड़ी काटने और बेचने का व्यवसाय अपनाना जो अपमान परिलक्षित होता है बेरोजगारी और दूसरों के कौर पर पलने से बेहतर है।
दूसरे नंबर पर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल ने बेरोज़गारी को दूर करने के लिए जरूरतमंद की जरूरत पूरी की है और सही दिशा में निर्देशित की है। हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अंसार के एक गरीब व्यक्ति मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हुए और अपनी जरूरत बयान करके आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कुछ मांगा। आप ने कहा: ” क्या तुम्हारे घर में कोई चीज़ भी नहीं है? ”। उसने कहा: ” बस एक कंबल है, जिसका कुछ भाग हम बिछा लेते हैं और कुछ ओढ़ लेते हैं और एक कटोरा है, जिस से हम पानी पीते हैं। आप ने कहा: ” यही दोनों चीजें मेरे पास ले आओ। उस व्यक्ति ने वह दोनों चीजें लाकर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में पेश कर दी। आप ने वह कंबल और प्याला हाथ में लेकर बेचने के लिए उपस्थितजनों से कहा: ” कौन इन दोनों चीजों को खरीदने के लिए तैयार है? ”। एक साहब ने कहाः ” मैं एक दिरहम में खरीदने के लिए तैयार हूँ”। फिर आपने कहा: ” कौन है जो एक दिरहम से अधिक देता है? ”। यह बात आप ने दो या तीन बार कही। उस पर एक साहब ने दो दिरहम देने की इच्छा जताई। आपने उस से दो दिरहम लेकर यह दोनों चीज़ें दे दीं। फिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह दो दिरहम उस अंसारी को देकर कहा: ” उन में से एक दिरहम के खाने का सामान खरीद कर परिवार को दे दो और दूसरे दिरहम से कुल्हाड़ी ख़रीदकर मेरे पास लाओ। अंसारी ने ऐसा ही किया और कुल्हाड़ी लेकर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में हाज़िर हुआ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने अपने पवित्र हाथ से उस कुल्हाड़ी में लकड़ी का एक मज़बूत दस्ता लगाया और कहा: ” वन से लकड़ी काटकर लाओ और बेचो और अब पंद्रह दिन तक मैं तुम्हें न देखूँ। इस प्रकार वह चला गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निर्देशानुसार लकड़ी बेचता रहा। फिर वह एक दिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में हाज़िर हुआ और बताया कि ” मैंने अपनी मेहनत और परिश्रम से अब तक दस दिरहम कमा लिया है, जिन में से कुछ का कपड़ा और कुछ का अनाज खरीद चुका हूं। इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: ” अपनी मेहनत से यह कमाना तुम्हारे लिए इस से बेहतर है कि क़यामत के दिन लोगों से मांगने का दाग तुम्हारे चेहरे पर हो”। ( अत्तर्ग़ीब वत्तर्हीबः 2/45)
यह है इस्लाम के अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का व्यावहारिक तरीका बेरोजगारी को दूर करने के लिए। फिर हर दौर में इस्लामी हुकूमत की जिम्मेदारी बनती है कि अपनी प्रजा की मदद करे ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। बैतुलमाल से ऋण दिया जाए ताकि कोई व्यवसाय कर सके। ऐसे अनगिनत उदाहरण इतिहास में मिलते हैं कि इस्लामी ख़लीफ़ा ने बैतुलमाल से लोगों की मदद की ताकि वे कोई वैध व्यवसाए अपना सकें।