
आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है, प्रेस को मानव जीवन के उत्थान और पतन में बड़ा महत्व प्राप्त है। किसी भी देश में परिवर्तन लाने में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह प्रेस है जो ज़ुल्म के ख़ेलाफ आवाज़ उठाता है
आज अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस है, प्रेस को मानव जीवन के उत्थान और पतन में बड़ा महत्व प्राप्त है। किसी भी देश में परिवर्तन लाने में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह प्रेस है जो ज़ुल्म के ख़ेलाफ आवाज़ उठाता है, यह प्रेस है जो दुनिया की परिस्थितियों से हमें अवगत कराता है, यह प्रेस है जो झूठ का पोल खोल कर सच्चाई को सामने लाता है। यह प्रेस है जो बुराइयों का पता लगाता और उन पर लगाम कसता है। लेकिन क्या आज पत्रकारिता अपना कर्तव्य अंजाम दे रही है, इस संबंध में हम सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू का ट्वीट प्रस्तुत कर देना काफी समझते हैं:
” आज पत्रकारिता मर चुकी है, अब 99% मीडिया हाऊस बिकाऊ हैं, इन्हें वैश्या से कम नहीं समझना चाहिए।”
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इंसानियत मर चुकी? क्या मानवता का दर्द बाक़ी नहीं रहा? क्या सच्चाई, न्याय और हक़ का साथ देने वाले दुनिया में नहीं रहे? बात ऐसी नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रत्रकारिता पर जिन लोगों का क़ब्ज़ा है उनकी नियतें अच्छी नहीं हैं। अगर प्रेस स्वतंत्रता के नाम पर विशेष समुदाय को टारगेट बनाया जा रहा हो, अभद्रता को बढ़ावा दिया जा रहा हो और साम्प्रदायिकता और नफरत की राजनीति की जा रही हो तो उसे स्वतंत्रता नहीं बल्कि गुलामी कहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हम विशाल हृदय से पत्रकारों की सेवा में कुछ प्रस्ताव रखना चाहेंगे इस आशा के साथ कि वे इन्हें पत्रकारिता में व्यवहारिक रूप देने का कष्ट करेंगेः
- ऐसा समाचार छापने या फैलाने से बचें जिसमें लोगों का कोई लाभ न हो। इसी संदर्भ में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः “इंसान के अच्छे इस्लाम की पहचान यह है कि वह व्यर्थ काम छोड़ दे।” (सुनन तिर्मिज़ीः 2317)
- अखबार की रिपोर्टिंग में पारदर्शिता और सच्चाई को ध्यान में रखें, समचार की सच्चाई को परख लें और झूठी ख़बर छापने या फैलाने से बचें। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता है किः “तुम सच्चाई को अपनओ। क्यों कि सच्चाई नेकी की ओर मार्गदर्शन करती है और नेकी स्वर्ग की ओर ले जाती है। एक बंदा सच बोलता रहता और सच्चाई की खोज में लगा रहता है यहाँ तक कि अल्लाह के हाँ सच्चा लिख दिया जाता है। और झूठ से बचो क्यों कि झूठ बुराई के रास्ते पर ले जाता है और बुराई नरक के रास्ते पर ले जाती है और एक व्यक्ति झूठ बोलता रहता और झूठ की खोज में लगा रहता है यहाँ तक कि वह अल्लाह के पास झूठा लिख दिया जाता है।” (सही मुस्लिमः 2607) बड़े खेद की बात है कि आज झूठे समाचार छापने और फैलाने की होड़ चली हुई है। बुरी नियत से कोई ख़बर एक इंसान बनाता है और उसे फैलाता है यहाँ तक कि सिकंडों में दुनिया के कोना कोना तक पहुंच जाती और अपना प्रभाव देखाने लगती है। इसी संदर्भ में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन अपने साथियों से सपने का वर्णन किया जिसमें उन्हों ने नरक के बहुत से दृश्य देखे, एक स्थान पर एक व्यक्ति को देखा कि उसका जबड़ा चीरा जा रहा है, और उसको महाप्रलय के दिन तक यही सज़ा मिलती रहेगी। पूछने पर बताया गया कि “वह बड़ा झूठा था कि एक झूठ बोलता जिसे उस से नक़ल किया जाता यहाँ तक कि सारी दुनिया में फैल जाता था।” (सही बुख़ारीः 2116)
- पूरी अनुसंधान और खोज के बाद समाचार तैयार करें, पत्रकारिता क्रेडिट लेने के नाम पर समाचार प्रसारण में जल्दबाजी न करें, समाचार फैलाने से पहले उसकी पूरी छानबीन कर लें और सच्चाई को परख लें। क़ुरआन ने कहाः “ऐ ईमान वालो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ।” (क़ुरआनः 49:6)
- केई भी समाचार इंसाफ और न्याय के साथ तैयार करें। किसी भी समाचार या सूचना को फैलाने में न्याय और इंसाफ का दामन थामना अति आवश्यक है। क़ुरआन ने यहाँ तक कहा कि किसी समुदाय से शत्रुता तुझे इंसाफ करने से न रोके: “ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है।” (क़ुरआनाः5:8)
- ऐसी खबरें प्रिंट न करें जिनसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे, भटकी सोच को फैलाने में सावधानी बरतें और इस्लामी शरीयत के किसी आदेश पर टिप्पणी करने से बचें कि यह ईश्वरीय संदेश है जिसका सम्बोधन सारी मानवता से है।
- यदि कोई सूचना सही हो लेकिन उसके फैलने से बिगाड़ पैदा होने का भय हो, बुराई का दरवाज़ा खुल सकता हो तो बेहतर यही है कि उसे न फैलाया जाए।