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हमें इसी दुनिया में रहते हुए निर्णय लेना है कि हम कहाँ जाना पसंद करेंगे, स्वर्ग में या नरक में ?

हमारे जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है कि हम यहाँ क्यों हैं, हमें कहाँ जाना है? मरने के बाद क्या होगा? कुछ लोग मानते हैं कि सांसारिक जीवन ही सब कुछ है। मरने के बाद कुछ भी होने वाला नहीं। ऐसे लोगों को हम नास्तिक कहते हैं। ऐसे लोगों के विचार में कुछ भी दम नहीं। क्योंकि यदि हम अपने जीवन की समीक्षा करें तो जो हमें दुनिया में मिला हुआ है तो मालूम होगा कि इस में किसी को पूर्ण संतुष्टी प्राप्त नहीं। इस दुनिया में हर आदमी के साथ गुज़रे हुए दिनों के पछतावे और आने वाले दिनों का भय लगा रहता है। यहाँ सब से बड़ा कष्ट मौत है जिसके कारण इंसान की सारी ख़ाहिशें धरी की धरी रह जाती हैं।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस जीवन में पूर्ण न्याय मौजूद नहीं। कितने लोग आजीवन नेकियाँ करते रहते हैं, कितने लोग आजीवन परेशानियां झेलते हैं, लेकिन उनको दुनिया में कोई बदला नहीं मिल पाता, जबकि दूसरी ओर कितने लोग आजीवन ज़मीन में फसाद मचाते हैं, इंसानों की हत्या करने और नाहक ख़ून बहाते हैं, हजारों की जान ले लेते हैं। दुनिया ऐसे अपराधी को सज़ा देना भी चाहे तो अधिकतम मौत की सजा दे सकती है। यहाँ तो एक जान को ही सज़ा मिल सकी जब कि उसने हजारों जानें ली थीं। इस प्रकार एक ऐसी जीवन की सख्त ज़रूरत महसूस होती है जहां नेकोकारों को उनका पूरा पूरा बदला मिल सके और अपराधियों और दुष्कर्मियों को पूरी पूरी सज़ा मिल सके।

मनुष्य एक दूसरा समूह वह है जिसका कहना है कि अच्छाई और बुराई का बदला इस दुनिया में ही मिल जाता है। मनुष्य अपने कर्मों का फल पाने के लिए इसी वर्तमान लोक में बार बार जन्म लेता है, आदमी अगर नेक है तो मरने के बाद अच्छे लोगों की योनि में फिर से जन्म लेता है और अगर बुरा है तो पेड़ पौधे और पशु के रूप में 74 लाख शरीर ग्रहन करता है। फिर वह पुनः मानव शरीर में प्रवेश करता है। इस आस्था को पुनर्जन्म का नाम दिया जाता है। हालांकि वेद भी इस आस्था का समर्थन नहीं करते। खुद शब्द पुनर्जन्म इस आस्था का खंडन करता है क्योंकि संस्कृत भाषा में पुनर्जन्म का अर्थ होता है “दोबारा जन्म लेना” बार-बार जन्म लेना नहीं। पुनः शब्द का अर्थ होता है दोबारा, न कि बार बार, और जन्म का अर्थ होता है पैदा होना, अर्थात् दोबारा पैदा होना, न कि बार-बार जन्म लेना। मानो पुनर्जन्म से मरने के बाद फिर से उठाए जाने की पुष्टि होती है। जिसका समर्थन खुद इस्लाम करता है।

हिंदू धर्म के बड़े बड़े पंडितों ने भी इस आस्था का खंडन किया है। डा. राधाकृष्णन लिखते हैं:

” वेदों में आवागमन का सिद्धांत नहीं मिलता।” ( इंडियन फिलास्फीः9/992)

श्री सत्याकाम विधालंकार लिखते हैं:

“वेदों में आवागमन नहीं है इस बात पर तो मैं जूआ भी खेल सकता हूं। (आवागमन पृष्ठः 104)

जब हम बौधिक दृष्टि से इस आस्था का विश्लेषण करते हैं तो हमारी बुद्धि भी इस आस्था का समर्थन नहीं करती।

1- इस संबंध में पहली बात यह है कि अगर कोई मनुष्य अपने बुरे कर्म का फल पाने के लिए पेड़ पौधे और पशू का रूप लेते हैं तो मानो पेड़ पौधे और पशू बुरे कर्मों का परिणाम हैं, हालांकि यह चीज़ें तो मनुष्य के लिए बहुत बड़ी हैं, जिनसे वह लाभ उठाते हैं, यदि यह पाप और गुनाह का प्रतिफल हैं तो पाप और गुनाह को मानवता के लिए एक जरूरी चीज़ का नाम देना होगा।

उसी प्रकार निर्धन और संकट में फंसे हुए लोगों को हम इस नज़र से देखेंगे कि वे बड़े पापी हैं, अगर पापी न होते तो इस हालत में कैसे पहुंचते।

2- यदि हम आवागमन की आस्था को मानते हैं तो इस बात का संदेह पाया जाता है कि एक महिला एक जन्म में किसी की बहन हो, दूसरे जन्म में उसकी माँ, तीसरे जन्म में उसकी पत्नी और चौथे जन्म में उसकी कन्या। क्या इस से पारिवारिक सम्मान को को बट्टा न लगेगा?

3- अगर हम आवागमन की आस्था को मानते हैं तो प्रश्न यह पैदा होता है कि एक व्यक्ति अपने पहले जन्म में क्या था? जानवर या इंसान, यदि वह जानवर के रूप में पैदा हुआ था तो यह उसके किन दुष्कर्मों का परिणाम था? और यदि इंसान के रूप में पैदा हुआ था तो पैदा होने से पहले उसने कौनसा ऐसा अच्छा कर्म किया था कि उसे इंसान की यौनि में पैदा किया गया।?

4- हम यह भी देखते हैं कि पृथ्वी पर मनुष्य दिन प्रतिदिन भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार तथा अन्य अत्याचारों में ज़्यादा से ज़्यादा लिप्त होता जा रहा है। होना तो यह चाहिए था कि ऐसे बुरे कर्मों के दंडस्वरूप अत्यधिक इंसानों का जन्म मानव में नहीं बल्कि वृक्ष, पशु अथवा दूसरे निम्न जीव में होता। इस तरह इंसानों की संख्या पहले से कम होनी चाहिए थी जबकि प्रतिदिन इंसानों की संख्या बढ़ ही रही है।

इस खुली सच्चाई से पता यह चलता है कि बार-बार जन्म लेने की कल्पना सही नहीं है, और मूल वही है जो इस्लाम ने कहा कि यह संसार जिसमें हम जीवन बिता रहे हैं परिणामस्थल नहीं बल्कि परिक्षास्थल है। इस परीक्षा का दौर आत्मा निकलते ही समाप्त हो जाता है। मनुष्य मरने के बाद फिर इसी दुनिया में वापस नहीं आता, बल्कि इस दुनिया से अलग एक दूसरी दुनिया में चला जाता है, जिसे बरज़खी दुनिया कहते हैं, इस दुनिया में इस समय तक रहता है जब तक महा-प्रलय न आ जाए। महा-प्रलय एक ऐसा दिन है जब पूरा संसार नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा, सम्पूर्ण संसार तथा उसकी लीलायें समाप्त हो जाएंगी, फिर एक दूसरी दुनिया वजूद में आएगी, जिसमें सारे इंसान मरने के बाद फिर से उठाए जाएंगे, वहाँ अल्लाह का न्यायालय होगा, हर व्यक्ति से उसके सांसारिक जीवन का लेखा-जोखा लिया जाएगा, दुनिया में जिसे न्याय न मिला होगा कल क़यामत के दिन उसे पूरा पूरा न्याय मिलेगा। अच्छा कर्म करने वालों को स्वर्ग मिलेगा जो सम्मान, आनंद और हर्ष का स्थान होगा और बुरा कर्म करने वालों को नरक में डाल दिया जाएगा, जो अपमान, दुख और कष्ट का स्थान होगा।

स्वर्ग में ऐसी ऐसी नेमतें होंगी कि दुनिया के बड़े से बड़े व्यक्ति की आंख ने न उन्हें देखा होगा न किसी कान ने ऐसी खुशी के बारे में सुना होगा और न किसी के दिल में इस प्रकार का अनुभव पैदा हुआ होगा।

जब कि नरक की धरती आग से दहक रही होगी, वह आग जो दुनिया की आग की तुलना में 70 गुना अधिक है, वहाँ आग में जलना होगा, आग का वस्त्र होगा, सिर पर उबलता हुआ पानी डाला जा रहा होगा, भूख लगने पर ज़क़्क़ूम नामक खाना दिया जाएगा जिसका एक बूंद यदि पृथ्वी पर गिर जाए तो दुनिया के सारे भोजन में जहर फैल जाए, प्यास से जब तड़पने लगेंगे तो उबलता हुआ पीप उनके मुंह में डाल दिया जाएगा जिससे उनकी अंतरियां बाहर आ जाएंगी।

यह है मरनोपरांत जीवन की वास्तविकता, अब हमें इसी दुनिया में रहते हुए निर्णय लेना है कि हम कहाँ जाना पसंद करेंगे, स्वर्ग में या नरक में ?