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: “आप इतिहास के मात्र व्यक्ति हैं जो अन्तिम सीमा तक सफल रहे धार्मिक अस्तर पर भी और सांसारिक अस्तर पर भी।”

क्या मुहम्मद (स.अ.व.) सच्चे सन्देष्टा हैं और क्या उनका संदेश सारी मानवता के लिए है, क्या प्रमाण है हमारे पास ? इस संबंध में हम आपके सामने 5 प्रमाण प्रस्तुत करेंगे जिसके द्वार यह सिद्ध होगा कि मुहम्मद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सच्चे सन्देष्टा हैं और उनका संदेश सारी मानवता के लिए है।

पहला प्रमाणः

पहला प्रमाण यह है कि मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी पूर्ण भी है और पवित्र भी है, मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी बचपन से लेकर मरते दम तक उसका कोई ऐसा छण नहीं जो छिपा हो, मानो इतिहास में केवल मोहम्मद (स.अ.व.) ही एक ऐसे व्यक्ति दिखाई देते हैं जिनकी पवित्र जीवनी बिल्कुल प्रमाणिक रूप में पूर्ण रूप से हम तक पहुंची है। इस तरह आपनी जीवनी बिल्कुल पूर्ण है, पवित्र इस प्रकार कि एक व्यक्ति उनके जीवन के एक एक छण को खंगाल कर देख सकता है, आपकी जीवनी चाहे बाल्यावस्था की हो या किशोरावस्था की, हर प्रकार के दाग से बिल्कुल पवित्र थी, सच्चे और अमानतदार इतने थे कि समाज के लोगों ने आपको अस्सादिक़ अर्थात सत्यवान और अल-अमीन अर्थात अमानतदार की उपाधि दे रखी थी।

फिर चालीस वर्ष के बाद जब नबी बनाए गए और लोगों को एक अल्लाह की ओर बुलाना शुरू किया तो समाज वाले शत्रु बन गये, गालियां दीं, पत्थर मारा, रास्ते में कांटे बिछाये, उनके साथियों को कष्टदाएक यातनाएँ दीं।  13 वर्ष तक मक्का में ऐसा ही होता रहा, मदीना में शरण लिया फिर भी शत्रुओं की शत्रुता में कमी नहीं आई, आठ पर्ष तक यहाँ भी उनसे लड़ाइयाँ करते रहे, फिर एक दिन वह भी आया कि आपने अपने जन्म-भूमि पर विजय पा लिया, सारे दुश्मन आपके कब्ज़ा में थे लेकिन सब की सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि वही जिन्हों ने आपको पत्थर मारा था, आपके चाहने वाले और अनुयायी बन गये। हर व्यक्ति इस विषय पर सोचेगा तो यह निर्णय लेने पर विवश होगा कि मुहम्मद (स.अ.व.) स्वार्थी नहीं थे बल्कि मानवता के रखवाले थे।

दूसरा प्रमाणः

मुहम्मद (स.अ.व.) सच्चे सन्देष्टा हैं इसका दूसरा प्रमाण यह है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बहुत सारी चमत्कारियां भी दी गईं ताकि लोग उनका समर्थन करें, मक्का वालों ने उनके संदेष्टा होने का प्रमाण मांगा तो उनकी उंगली के एक इशारे पर चाँद दो टुकड़े हो गए, हुदैबिया की संधि के अवसर पर आपकी उंगलियों से पानी निकला और चौदह सौ साथियों ने अपनी प्यास बुझाई, आपका सबसे बड़ा चमत्कार पवित्र कुरआन है, क्योंकि आप न पढ़ना जानते थे न लिखना जानते थे, न आपका कोई गुरु था, फिर भी ऐसी वाणी पेश कर रहे हैं जो खुद चुनौती दे रही है कि मानव और दानव सब मिलकर भी इस आयत के समान एक श्लोक भी बनाकर प्रस्तुत नहीं कर सकते।

तीसरा प्रमाणः

मुहम्मद (स.अ.व.) सच्चे संदेष्टा हैं इसका तीसरा प्रमाण यह है कि मुहम्मद (स.अ.व.) के आगमन की भविष्यवाणी उनसे पहले सारे धार्मिक ग्रन्थों ने की थी,  अन्तिम संदेष्टा का वर्णन वेदों में नराशंस के नाम से 31 स्थान पर हुआ है और पुराणों में कल्कि अवतार के नाम से उनका वर्णन मिलता है।

नराशंस शब्द “नर” और “आशंस” दो शब्दों से मिल कर बना है। नर का अर्थ होता है मनुष्य और आशंस का अर्थ होता है ” प्रशंसित” अर्थात् मनुष्यों द्वारा प्रशंसित। ज्ञात यह हुआ कि वह व्यक्ति मनुष्यों द्वारा प्रशंसित होगा और मनुष्य की जाति से होगा, देवताओं की जातियों से नहीं। और मुहम्मद का अर्थ भी “प्रशंसित मनुष्य” होता है जो मनुष्य ही थे और आज जब मुसलमान उन्हें एक मनुष्य के रूप में ही देखता है।

बल्कि कल्कि पुराण में अन्तिम संदेष्टा के जन्म-तिथि का भी उल्लेख किया गया है:

” जिसके जन्म लेने से मानवता का कल्यान होगा, उसका जन्म मधुमास के शुम्भल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथी को होगा।” [ कल्कि पुराण 2:15 ]

मुहम्मद सल्ल0 का जन्म भी 12 रबीउल अव्वल को हुआ, रबीउल-अव्वल का अर्थ हाता है मधवमास का हर्षोल्लास का महीना।

श्रीमद भगवद महापुराण में कल्कि अवतार के माता पिता का वर्णन करते हुए कहा गया है:

शम्भले विष्णु पशसो ग्रहे प्रादुर्भवाम्यहम।

सुमत्यांमार्तार विभो पत्नियाँ न्नर्दशतः।।

अनुवाद: ” सुनो! शम्भल शहर में विष्णु-यश के यहाँ उनकी पत्नी सुमत्री के गर्भ से पैदा होगा।” [ कल्कि अवतार अध्याय2 श्लोक1]

इस श्लोक में अवतार का जन्म स्थान शम्भल बताया गया है, शम्भल का शाब्दिक अर्थ है ” शान्ति का स्थान” और मक्का जहाँ मुहम्मद सल्ल. पैदा हुए उसे अरबी में “दारुल-अम्न” कहा जाता है। जिसका अर्थ ” शान्ति का घर” होता है। विष्णुयश कल्कि के पिता का नाम बताया गया है और मुहम्मद सल्ल0 के पिता का नाम अब्दुल्लाह था और जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अर्थ अब्दुल्लाह का होता है। विष्णु अर्थात् अल्लाह और यश अर्थात् बन्दा, यानी “अल्लाह का बन्दा।” (अब्दुल्लाह) ।

उसी प्रकार कल्कि की माता का नाम सुमति” ( सोमवती) आया है जिसका अर्थ होता है: ” शान्ति एवं मननशील स्वभाव वाली” और मुहम्मद सल्ल. की माता का नाम भी आमना” था जिसका अर्थ है: ” शान्ति वाली।”

डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपनी पुस्तक “कल्कि अवतार और मुहम्मद ” और डा. एम ए श्री वास्तव ने अपनी पुस्तक हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और भारतीय धर्म ग्रंथ में कल्कि अवतार और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की विशेषताओं का तुल्नात्मक अध्ययन करते हुए साबित किया है कि आज हिन्दु धर्म में जिस कल्कि अवतार की प्रतीक्षा की जा रही है, वह आ चुके और वही पैगंबर मुहम्मद हैं।

चौथा प्रमाणः

मुहम्मद (स.अ.व.) सच्चे सन्देष्टा हैं इसका चौथा प्रमाण यह है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नायक, बादशाह और संदेष्टा होने के बावजूद बिल्कुल सरल और सादा जीवन गुज़ारा। आपकी पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी पेट भर कर खाना नहीं खाया, और न कभी भूख की शिकायत की, कभी ऐसा होता कि आपको भूख के कारण रात भर नींद नहीं आती, लेकिन अगले दिन फिर रोज़ा (उपवास) रख लेते। महीनों गुज़र जाता और आपके घर में आग नहीं जलती थी, पूछा गया फिर खाना क्या होता था? कहाः खुजूर और पानी।

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो आखिरी रात दुनिया में काटी, उस रात आपकी पत्नी आयशा ने दिया जलाने के लिए तेल एक पड़ोसन से उधार लिया था।

पांचवाँ प्रमाणः

मुहम्मद (स.अ.व.) सच्चे सन्देष्टा हैं इसका पांचवाँ प्रमाण यह है कि आपने जो संदेश दिया था वह विश्वव्यापी संदेश है, आपने मात्र एक अल्लाह की पूजा और बुलाया, मानव के बीच से ऊँच-नीच और भेद-भाव को समाप्त किया, आपने एक जीवन व्यवस्था दिया जो हर युग और हर स्थान के लिए बिल्कुल फिट हो जाने वाला नियम है। इस लिए हम अंत में यह कहने पर मजबूर हैं कि मुहम्मद सच्चे सन्देष्टा हैं और अपने जो संदेश दिया वह सारी मानवता के लिए है।

एक ईसाई लेखक डॉ माइकल एच हार्ट ने एक पुस्तक लिखी हैः THE HUNDRED, इस पुस्तक में उसने दुनिया पर प्रभाव डालने वाले 100 महा-पुरुषों की जीवनी का वर्णन किया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसने ईसाई होने के बावजूद उन 100 महा-पुरुषों में पहले नंबर पर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रखा है, इसका कारण व्यक्त करते हुए कहता है:

“आप इतिहास के मात्र व्यक्ति हैं जो अन्तिम सीमा तक सफल रहे धार्मिक अस्तर पर भी और सांसारिक अस्तर पर भी।”

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