
जब ईश्वर की सही पहचान हो जाएगी तो हमारा मामला केवल मानवता के साथ नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के साथ अच्छा हो जाएगा
बहुत से लोग यह कहते हैं कि धर्म नाम है मानवता का। यह बात पूर्ण रूप में सही नहीं क्योंकि असल धर्म सत्य ईश्वर की खोज है, जब ईश्वर की सही पहचान हो जाएगी तो हमारा मामला केवल मानवता के साथ नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के साथ अच्छा हो जाएगा, क्योंकि सत्य ईश्वर को पहचानने के बाद उसकी सृष्टि से प्रेम होना स्वभाविक है और सच्चा भक्त वही है जो ईश्वर के साथ उसकी सम्पूर्ण सृष्टि से प्रेम करता है।
लेकिन सर्वप्रथम प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या ईश्वर को मानना ज़रूरी है ? इंसान ने बहुत प्रगति कर ली है। संसार के बहुत से रहस्यों की खोज कर ली है और यह खोज निरंतर जारी है। आज जीवन विभिन्न प्रकार के ज्ञान का सागर बन चुका है। जिससे ज़ींदगी आसान हो गई है, परेशानियाँ दूर हो रही हैं और और घंटों का काम मिंटों में अंजाम पा रहा है। इंसान आकाश पर चढ़ गया, समुद्र की गहराई में ग़ोता लगाया। प्रमाणु को अपने अधीन कर लिया और आकाशगंगा के रहस्यों को जान लिया। परन्तु क्या इस खोज ने इंसान को अल्लाह पर ईमान से बेनेयाज़ किया? क्या इंसान ने सुख और शांति प्राप्त की ? अपनी बहुत सारी इच्छाईं और आकांक्षायें पूरी करने के बाद भी क्या उसके हृदय और उसकी आत्मा को संतुष्टी मिली ?
बड़े खेद की बात है कि इस भौतिक प्रगति के बावजूद मानव जीवन सुख और शांति से वंचित है। उसकी आत्मा को चैन नहीं। उसकी परेशानियाँ बढ़ती ही जा रही हैं। फिर उस प्रगति और सास्कृतिक जीवन का क्या फाइदा जो इंसान को सुख और शांति न दे सके।
इंसान को यह शांति ऊपर वाला ही प्रदान कर सकता है जो इंसान का सृष्टा और स्वामी है।
उस सृष्टा और स्वामी के अस्तित्व के प्रमाण पूरे बृह्मांड और स्वयं हमारे वजूद में हैं। हमारा वजूद स्वयं प्रभू का परिचय कराता है। वह इस तौर पर कि तीन में से कोई एक चीज़ ही हो सकती है। या तो यह कहा जाए कि सारा बृह्मांड स्वयं बन गया है, उसका कोई बनाने वाला नहीं। लेकिन बुद्धि इसे मानने के लिए तैयार नहीं, क्योंकि कोई भी चीज़ बिना बनाए नहीं बनती।
यदि कोई कहे कि एक कंपनी है जिसका न कोई मालिक है, न कोई इन्जीनियर, न मिस्त्री। आप से आप बन गई, सारी मशीनें स्वंय तैयार हो गईं, खूद सारे पूर्ज़े अपनी अपनी जगह लग गए और स्वयं ही अजीब अजीब चीज़े बन बन कर निकल रही हैं। विदित है कि ऐसा व्यक्ति बुद्धिहीन ही होगा।
दूसरी शक्ल यह हो सकती है कि हम कहें कि संसार ने स्वयं को बनाया है। लेकिन यह विचार भी बुद्धिसंगत नहीं क्योंकि एक ही चीज़ सृष्टा भी हो और सृष्टि भी हो ऐस सम्भव नहीं हो सकता। इस से तो यह लाज़िम आएगा कि धरती ने धरती को पैदा किया और आकाश ने आकाश को पैदा किया।
जब यह दोनों नियम निरस्त हुए कि बृह्मांड बिना बनाने वाले के बन गया है या बृह्मांड ने स्वयं को बनाया है तो अब मानना पड़ेगा कि इसका कोई बनाने वाला है। क़ुरआन ने इसी विषय की ओर संकेत कियाः
“या वे बिना किसी चीज़ के पैदा हो गए? या वे स्वयं ही अपने स्रष्टाँ है? या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया?” (क़ुरआनः 52: 35-36)
जब बात यह ठहरी कि कोई भी चीज़ बिना बनाने वाले के नहीं बन सकती और न ही वह स्वयं को बना सकती है तो अब हमें उत्तर दीजिए कि क्या यह संसार तथा धरती और आकाश का यह ज़बरदस्त कारख़ाना जो आपके सामने चल रहा है, जिसमें चाँद, सूरज और बड़े बड़े नक्षत्र घड़ी के पुर्ज़ों के समान चल रहे हैं क्या यह बिना बनाए बन गए?
यही बात जब एक देहाती के हृदय में पैदा हुई तो उसके तुरन्त कहाः “पैरो के निशान चलने वाले को बताते हैं तो यह सय्यारों वाला आकाश और विभिन्न चीज़ों को समेटी हुई धरती क्या अपने पैदा करने वाले के लिए प्रमाण नहीं?”
ज़रा तूत के पत्ते को देखिए उसका एक ही स्वाद है, लकिन उसे कीड़ा खाता है तो उससे रेशम बनता है। शहद की मक्खी खाती है तो शहद बनता है। बकरी, गाय और पशु खाते हैं तो गोबर बनता है, हिरन खाते हैं तो मुश्क बनता है। हालांकि चीज़ एक है। यह सब किसी कारीगरी है ?
अंडा को देखिए कि जिसमें न कोई द्वार है और न कोई रास्ता, हर ओर से बंद है, अचानक अंडा फूटता है और एक आखों और कानों वाला अति सुंदर एक जीव प्यारी बोली वाला चलता हुआ बाहर निकल आता है। इस सुरक्षित स्थान में किसने उसे बनाया ?
यह समुद्र जिसके खारी और कड़ुआ पानी के बीच स्वादिष्ट और मीठे पानी का स्रोत पाया जाता है और दोनों एक दूसरे के साथ चलते हैं लेकिन एक दूसरे से नहीं मिलते (क़ुरआनः25: 53) क्या यह सब आकस्मिक रूप में हो गया ?
यह आकाश जो धरती से पाँच सौ वर्ष की गति पर है फिर भी बिना स्तंभ के ठहरा हुआ है। (क़ुरआनः13:2) इसमें कोई छेद और टेड़ापन नहीं। फिर उसे सूर्य, चंद्रमा और सितारों से सजा रखा है आख़िर ऐसी भारी भरकम चीज़ किसके कंट्रौल से स्थित है ?
फिर ज़मीन को देखिए जिस पर हम बसते हैं, जहाँ से हमारे लिए अनाज उगता और विभिन्न प्रकार के फल पैदा होते हैं। प्रश्न यह है कि इसे किसने बनाया, किसने इस में अटल पहाड़ जमाया, ताकि धरती को हिलने और झुकने से बचाए। (क़ुरआनः 16:15) क्या ऐसा आकस्मिक रूप में हो गया ?
पशुओं के जीवन से मात्र दूध पर विचार कीजिए पेट में एक ओर गोबर दूसरी ओर बदबूदार ख़ून लेकिन उन दोनों के बीच जो चीज़ पैदा हो रही है वह अति शुद्ध और मानव शरीर के लिए अति आवश्यक है। क़ुरआन ने कहाः
“और तुम्हारे लिए चौपायों में से एक बड़ी शिक्षा-सामग्री है, जो कुछ उनके पेटों में है उसमें से गोबर और रक्त से मध्य से हम तुम्हे विशुद्ध दूध पिलाते है, जो पीनेवालों के लिए अत्यन्त प्रिय है।” (क़ुरआन: 16: 66)
ज़रा सोचें यह सब किस महिमा की कारीगरी है? इंसान की शक्ति तो इतनी है कि वह एक मक्खी भी नहीं पैदा कर सकता, क़ुरआन ने कहाः
“ऐ लोगों! एक मिसाल पेश की जाती है। उसे ध्यान से सुनो, अल्लाह से हटकर तुम जिन्हें पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते। यद्यपि इसके लिए वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो उससे वे उसको छुड़ा भी नहीं सकते। बेबस और असहाय रहा चाहने वाला भी (उपासक) और उसका अभीष्ट (उपास्य) भी।” (क़ुरआनः 22: 73)
स्वयं हम तुच्छ वीर्य थे, जो रक्त बना, रक्त सो लोथरा हुआ, लोथड़ा से हड्डी बना, हड्डी पर मास चढ़ा और नौ महीना की अवधि में विभिन्न परिस्थितियों से गुज़र कर अत्यंत तंग स्थान से निकले, हमारे लिए माँ के स्तन में दूध उत्पन्न हो गया, हम आग और पानी में अन्तर नहीं कर सकते थे। कुछ समय के बाद हमें बुद्धि ज्ञान प्रदान किया गया, हमारा फिंगर प्रिंट सब से अलग अलग रखा गया इन सब परिस्थितियों में माँ का भी हस्तक्षेप न रहा, क्योंकि हर माँ की इच्छा होती है कि होने वाला बच्चा गोरा हो लेकिन काला हो जाता है, लड़का हो लेकिन लड़की हो जाती है। अब सोचिए कि जब कोई चीज़ बिना बनाए नहीं बन सकती जैसा कि आप स्वयं मान रहे हैं तथा यह भी स्पष्ट हो गया कि उस में माँ का भी हस्तक्षेप नहीं होता तो अब सोचें कि क्या हम बिना बनाए बन गए?
अब आप विचाक करें कि यह सह किसने किया ? कौन है जिसने प्रत्येक इंसानों को विभिन्न रंग और रूप में पैदा किया और उनकी भाषायें भी अलग अलग रखी? कौन है जिसने माता-पिता के दिल में बच्चे के लिए प्रेम-भाव पैदा किया ?
ईश्वर के अस्तित्व का एक बड़ा चिन्ह ब्रह्मांड की चीजों में विविधता का पाया जाना है; पशु और पक्षी हर क्षेत्र में पाए जाते हैं, लेकिन प्रत्येक पशु और पक्षी के आकार एक दूसरे से भिन्न भिन्न होते हैं। दुनिया में हज़ारों वर्ष से इंसानों की रचना एक ही प्रकार के धातु से होती है, बनावट में भी तरतीब पाई जाती है, फिर भी हर इंसान का जन्म विभिन्न रंगों में होता है। विभिन्न ध्वनियों, विभिन्न बोलियों, विभिन्न भाषायें और विभिन्न दृष्टिकोण।
आज फ़िंगरप्रिंट इंसान की पहचान बना हुआ है। क्योंकि ब्रह्मांड में कोई इंसान नहीं पाया जाता जिसका फ़िंगरप्रिंट एक समान हो। मनुष्य बड़े से बड़े कारखाने का मालिक हो, फिर भी उसके उत्पाद के डिजाइन सीमित होते हैं, और उत्पाद बार बार उसी डिज़ाइन पर तैयार किए जाते हैं। लेकिन इंसानी रचना में किसी दो व्यक्ति के फ़िंगरप्रिंट का भी एस समान न होना क्या एक महान ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण नहीं देता?
कभी हम संकट में फंसते हैं तो हमारा सिर प्राकृतिक रूप में ऊपर की ओर उठने लगता है शायद आपको भी इसका अनुभव होगा। कभी विचार किया ऐसा क्यों होता है? इसलिए कि ईश्वर ऊपर है और उसकी कल्पना मानव के स्वभाव में पाई जाती है, परन्तु सच्चाई यह है कि अधिकांश लोग अपने ईश्वर को पहचान नहीं रहे हैं। यही वह स्वभाव है जिस पर हर इंसान की संरचना होती है। किसी के मन में यह प्रश्न पैदा हो सकता है कि यदि स्वभाव में एक ईश्वर की कल्पना पाई जाती है तो इंसान ने हर युग में मूर्ति पूजा क्यों की है? तो इसका उत्तर यह है कि इंसानी स्वभाव तो अवश्य उसे एक ईश्वर की ओर आमंत्रित करता है लेकिन समाज और वातावरण के प्रभाव के कारण इंसान सत्य ईश्वर से मुंह मोड़ लेता है। यही संदेश मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के एक प्रवचन में दिया गया है कि ” हर बच्चा इस्लाम पर पैजा होता है फिर उसके माता-पिता उसे यहूदी बना देते हैं या इसाई बना देते हैं या अग्रिपूजक बना देते हैं।
इसी लिए बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने ईश्वर के अस्तित्व को माना है। फलसफी बास्काल कहता है “ईश्वर को छोड़ कर कोई चीज़ हमारी प्यास बुझा नहीं सकती”।
शातोबरीन लिखता हैः “ईश्वर के इनकार का साहस मानव के अतिरिक्त किसी ने नहीं किया।”
लायतीह यहाँ तक कहता है किः “जो शब्द सृष्टा का इनकार करे उसके प्रयोग करने वाले के होंट आग में जलाए जाने योग्य हैं।”
ईश्वर एक है या अनेक
जब हम ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास कर लेते हैं तो हमें यह भी मानना पड़ेगा कि ईश्वर यदि है तो वह एक है अनेक नहीं। क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि एक देश का दो प्रधान मंत्री नहीं होता, एक स्कूल का दो अध्यक्ष नहीं होता, एक सेना का दो कमानडर नहीं होता, एक घर का दो गारजियन नहीं होता। यदि हुआ तो क्या आप समझते हैं कि नियम ठीक ठाक से चल सकेगा? अब आप कल्पना कीजिए कि इतनी बड़ी सृष्टि का प्रबंध पूरे संतुलन से चलना क्या पता नहीं देता कि ईश्वर एक ही है जिसका कोई भागीदार नहीं?
अब आइए दूसरे तरीक़े से हम विचार करते हैं, मान लीजिए कि दो भगवान है। उनमें से एक रामदास को पद पर आसीन करना चाहता है जबकि दूसरा उसे उस पद से दूर रखना चाहता है। विदित है कि दोनों की इच्छा एक ही समय में पूरी नहीं हो सकती। इस प्रकार जिसने अपने संकल्प को पूरा किया वह विजेता हुआ और जिसका इरादा पूरा न हो सका वह पराजित हो गया और ज़ाहिर है कि जो पराजित हो वह भगवान नहीं हो सकता।
क़रआन जैसे पवित्र ग्रन्थ में हमें ईश्वर ने यह प्रमाण दिया है कि यदि धरती और आकाश में अनेक पूज्य होते तो खराबी और फसाद मच जाताः
“यदि इन दोनों (आकाश और धरती) में अल्लाह के सिवा दूसरे इष्ट-पूज्य भी होते तो दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती।” (क़ुरआनः 21:22)
बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि संसार में दो ईश्वर होते तो संसार का नियम नष्ट भ्रष्ट हो जाता, एक कहता कि आज बारिश होगी तो दूसरा कहता कि आज बारिश नहीं होगी। एक राम दास को किसी पद कर आसीन करना चाहता तो दूसरा चाहता कि राम दास उस पद पर आसीन न हो।
यदि देवी देवता का यह अधिकार सत्य होता तथा वह ईश्वर के कार्यों में शरीक भी होते तो कभी ऐसा होता कि एक दास ने पूजा अर्चना कर के वर्षा के देवता से अपनी बात स्वीकार करा ली, तो बड़े मालिक की ओर से आदेश आता कि आज बारिश नहीं होगी। फिर नीचे वाले हड़ताल कर देते।
स्वयं आप कल्पना कीजिए कि यदि दो ड्राईवर एक गाड़ी पर बैठा दिया जाए तो गाड़ी अवश्य एक्सिडेन्ट कर जाएगी। ईसी लिए मानना पड़ेगा कि इस संसार का सृष्टिकर्ता केवल एक है।
किसी कवि ने क्या ही सुंदर कहा हैः
अगर दो ख़ुदा होते संसार में
तो दोनों बला होते संसार में।
ईधर एक कहता कि मेरी सुनो
ईधर एक कहता कि मियाँ चुप रहो।