
“जो व्यक्ति किसी ज्योतिषी अथवा नुजूमी के पास आया और उसकी कही हुई बातों का समर्थन किया तो उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारी गई शरीअत का इनकार किया।”
अभी हम 21वीं शताब्दी से गुजर रहे हैं, यह शताब्दी अविष्कारों की शताब्दी कहलाती है , बुद्धि विवेक में प्रगति की शताब्दी कहलाती है , हर मैदान में विकास ही विकास दिखाई दे रहा है , परन्तु खेद की बात यह है कि इस शताब्दी में सभ्य और विकसित कहलाने वाले कुछ लोग ऐसा ऐसा काम करने लगे हैं जिसे सुनकर पशुओं की दुनिया याद आ जाती है , दिमाग चकराने लगता है और बार बार हमारे मन में यह सवाल उठता है कि समझ बुझ रखने के बावजूद लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं….? पिछले दिनों समाचार पत्रों के माध्यम से तीन ऐसी घटनायें नज़रों से गुज़रीं जिन्हें पढ़कर आश्चर्यचकित रह गया.
पहली घटनाः एक व्यक्ति ने अपने सगे बेटे को जान से मार डाला क्योंकि किसी तांत्रिक ने उसे बताया था कि अगर उसने अपने बच्चे की हत्या कर दी तो वह बहुत जल्द धनवान बना जाएगा- यह घटना भारतीय राज्य असम की है।
दूसरी घटनाः एक बाप अपनी ही बेटी के साथ 9वर्ष तक बलात्कार करता रहा क्योंकि उसे तांत्रिक ने यह सुझाव दिया था कि अगर अपनी आर्थिक बदहाली दूर करना चाहते हो तो अपनी बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाओ. यही नहीं बल्कि उसने अपनी एक अन्य जवान बेटी को तांत्रिक के हवाले किया जो उसी के घर में उसकी बच्ची के साथ बलात्कार करता रहा. यह घटना मुंबई की है।
तीसरी घटनाः चार भाइयों ने रातों रात धन प्राप्त करने के चक्कर में तांत्रिकों के कहने पर मां की बेरहमी से हत्या कर दी. इन चारों भाइयों से किसी तांत्रिक ने यह कहा था कि उनके घर में खजाना मौजूद है….लेकिन इसे प्राप्त करने के लिये अपनी माँ की बलि देनी होगी। आश्चर्य की बात यह है कि चारों भाई शिक्षित थे उनमें से एक MBA दूसरा इनजीनियर और बाकी दो बारहवीं कक्षा के छात्र थे। यह घटना भारतीय राजधानी दिल्ली की है।
ऐसी घटनाएँ आए दिन हमारे समाज में होती रहती हैं, आज भी हमारे समाज में तांत्रिकों का जोर है, हालांकि उनके हाथ में कुछ भी नहीं, वह हमारी बुद्धि से खिलवाड़ करते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि आखिर हम ऐसे तांत्रिक के पास क्यों जाते हैं? इसका मूल कारण यह है कि एक व्यक्ति ऊपर वाले अल्लाह की सही पहचान नहीं रखता, और जब आदमी उसके दरवाज़े से कटता है तो दर-दर की ठोकरें खाता है, सब कुछ से डरता है, यहाँ तक कि अपनी छाया से भी भय खाता है। अपने ही जैसे व्यक्ति को लाभ एवं हानि का मालिक बना बैठता है, इस्लाम में ऐसे अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं।
अब आप पूछ सकते हैं कि मानव समाज से तांत्रिक का जोर कैसे खत्म किया जाए। कैसे लोगों में यह जागरुकता लाई जाए कि वे तांत्रिक के फंदे में न फंसें ?
इसका पहला इलाज यही है कि हमारा ऊपर वाले (अल्लाह) पर दृढ विश्वास हो जाए। हम उसकी सही पहचान प्राप्त कर लें। एक मुसलमान इस बात पर विश्वास रखता है कि अल्लाह बृह्मांड का सृष्टा, स्वामी और शासक है, वही आकाश और पृथ्वी के खज़ाने के मालिक है, उसके अलावा और कोई हमारे लाभ एवं हानि का मालिक नहीं, उसके अलावा और कोई मुसीबतों को दूर नहीं कर सकता, उसके अलावा और कोई बीमारी ठीक नहीं कर सकता, उसके अलावा और कोई हमारी आजीविका को रोक नहीं सकता। अल्लाह ने कहाः
وَمَا مِن دَابَّةٍ فِي الْأَرْضِ إِلَّا عَلَى اللَّـهِ
धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। (सूरः हूदः 6)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चाचा के बेटे इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को जो एक छोटे बच्चे थे उपदेश देते हुए कहा था: हे लड़के! याद रख! यदि पूरी दुनिया तुम्हें लाभ पहुंचाने के लिए एकत्र हो जाए तो इतना ही लाभ पहुंचा सकती है जितना अल्लाह ने तेरे भाग में लिख दिया होगा, और अगर पूरी दुनिया तुझे हानि पहुंचाने के लिए एकत्र हो जाए तो इतनी ही हानि पहुंचा सकती है जितना अल्लाह ने तेरे भाग में लिख दिया होगा। (सुनन अत्तिर्मिज़ीः 2516)
जब हमारा सम्पर्क ऊपर वाले से ठोस होगा तो किसी मामले में हम तांत्रिक के फंदे में नहीं फंस सकते हैं।
इस सम्बन्ध में दूसरी बात यह है कि इस्लाम हमें बुद्धि से काम लेने पर जोर देता है, सोचना चाहिए कि हमारे जैसा व्यक्ति हमारा भाग्य कैसे बदल सकता है, हमारा भाग्य कैसे चेंज कर सकता है, हमें सोचना होगा कि जब हम कोई सामान खरीदने जाते हैं तो सौ बार उसे देखते और परखते हैं, तो फिर धर्म के मामले में हम अपनी बुद्धि क्यों नहीं लगाते, वास्तव में बड़े खेद की बात है कि हम धर्म के मामले में बुद्धि को बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं, हम यह सोचते लगते हैं कि ऐसा एक ज़माने से होता आ रहा है, सच्ची बात यह है कि इसी सोच के कारण हम अपने ही जैसे मनुष्यों की पूजा करते हैं, अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं, कालों और गोरों में अंतर करते हैं, जातिवाद और ऊँच-नीच को बरतते हैं। कुरआन हमें बुद्धि से काम लेने पर प्रेरित है, पैतृक प्रथाओं का विश्लेषण करता है। यह क्या है कि हमारे पाब दादा ऐसा ही करते थे इस लिए हम भी करेंगे? यदि हमारे पूर्वजों ने ज्ञान प्राप्त नहीं किया था तो क्या हम भी ज्ञान प्राप्त नहीं करेंगे ? हमारे पूर्वजों ने चोरी की थी तो क्या हम भी चोर बन जाएंगे? यदि हमारे पूर्वजों ने कोई गलत काम किया था तो उनके करने के कारण वह काम अच्छा नहीं बन जाएगा। इस लिए आँख बंद करके मानने की बजाय सच्चाई की खोज होनी चाहिए। कुरआन विभिन्न स्थानों पर ऐसे लोगों की निन्दा करता है जो पूर्वजों के तरीके पर जमे रहते हैं: कुरआन ने कहाः
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنزَلَ اللَّـهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا أَلْفَيْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۗ أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ – سورة البقرة: 170
“और जब उन से कहा जाता है, “अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।” तो कहते हैं, “नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।” क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों?” (सूरः अल-बक़रा 170)
ठीक है पिता का अनुसरण अच्छी बात है, जब कि वे बुद्धि से काम लेते रहे हों और सत्य मार्ग पर हों लेकिन क्या दिशा में भी जबकि उनके पिता कुछ भी बुद्धि से काम लेते न रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हैं?
तीसरे नंबर पर इस्लाम हमें हर बीमारी का इलाज बताता है, अगर किसी को नजर लग गई है या जादू का असर है या भूत-प्रेत ने परेशान कर रखा है तो कुरआन ने इसका पूर्ण उपचार बता दिया है। मुसलमान हों कि ग़ैर-मुस्लिम सारे इंसान क़ुरआन द्वारा अपनी बीमारी का इलाज करा सकते हैं। लेकिन अपनी समस्याओं के समाधान हेतु तांत्रिक और ज्योतिष के पास जाएं, एक मुसलमान ऐसा नहीं कर सकता क्यों कि उसका ईमान है कि ऊपर वाले के अलावा कोई दूसरा नहीं जो हमारी बिगड़ी बना सके, इसी लिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता है:
من أتى عرافًا أو كاهنًا فصدَّقه بما يقول ؛ فقد كفر بما أُنزِلَ على محمدٍ . صحيح الترغيب: 3047
“जो व्यक्ति किसी ज्योतिषी अथवा नुजूमी के पास आया और उसकी कही हुई बातों का समर्थन किया तो उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारी गई शरीअत का इनकार किया।”
इस तरह इस्लाम हमें तांत्रिक के फंदे से निकालने के लिए हमारे दिल में एक अल्लाह पर विश्वास बैठाता है, बुद्धि से काम लेने पर उभारता है और आँख बंद कर के पूवजों का अनुसरण करने से रोकता है।